Friday, April 19, 2013

पीरखाना, बंटी बाबा और करिश्में

एक ऐसा स्थान जहाँ मन भी बदलते हैं और जिंदगी के रंग ढंग भी
लुधियाना की काकोवाल रोड पर स्थित न्यू अग्रवाल पीरखाना एक ऐसा धार्मिक स्थान है जहाँ लोगों के मन बदल दिए जाते हैं। यह सत्य कथा है लुधियाना के ही एक ऐसे व्यक्ति की जो एक ऐसे महत्वपूर्ण सरकारी विभाग की जहाँ वह बहुत ही ख़ास पद पर नियुक्त था। लम्बी नौकरी के बाद आखिर एक दिन रिटायर होने का वक्त भी आ गया। रिटायर होने पर कई किस्म की परेशानियाँ भी आकर घेरने लगीं। बहुत हाथ पाँव मारे लेकिन उलझनें थीं कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। एक दिन मित्र के कहने पर पीरखाना पर जा कर सजदा किया। वहां मुलाकात हुई इस दरबार के प्रमुख बंटी बाबा के साथ। वहां बैठते ही बंटी बाबा ने उसकी तरफ देखा और खुद अवाज़ देकर उसे अपने पास बुलाया। साफ़ और सीधे शब्दों में पूछा--क्या यही समस्या है---इसी काम से यहाँ आये हो---? दरबार में पहुंचा व्यक्ति हैरान कि सारी बात यहाँ कैसे मालूम-----लेकिन जवाब तो देना ही था---हाँ की मुद्रा में सर हिल दिया। बाबा ने अगला सवाल पुछा-क्या शराब पीते हो---? जवाब में कहा नहीं----अगला सवाल था क्या बेटा शराब पीता है---? जवाब फिर इनकार में ही था। बाबा ने दो पल के लिए आंख बंद की---सिगरेट से एक सूटा लगाया---और डांट भरी नाराज़ नजर से देखते हुए कहने लगे जब तू भी नहीं पीता--तेरा बीटा भी नहीं पीता तो फिर तेरे घर के अमुक कमरे की अमुक अलमारी में शराब की इतनी बोतलें क्या कर रहीं हैं ? रिटायर्ड अधिकारी की नजरें झुक गयीं---सफाई देते हुए बोला---जी मेहमानों और दोस्तों के लिए रखीं हैं---बंटी बाबा एक बार फिर उसे डांटते हुए बोले मैं यहाँ लोगों की शराब छुड्वाता हूँ और तुम लोगों को पिलाते हो----बांटते हो ?? ऐसा चलेगा तो तेरा काम नहीं हो सकता---! डांट सुन कर  व्यक्ति डर गया--बोला बाबा ऐसा न कहिये---तो बाबा फिर उसकी तरफ देख कर बोले की जा और उन बोतलों को तोड़ कर आ---वह व्यक्ति गया और महंगी शराब की 18 बोतलें उसी रात को तोड़ दीं--....आज वह बहुत ही सुखी व्यक्ति है---बदल गए न मन के रंग--और साथ ही जिंदगी के ढंग---! -आर के तारेश