उस वक़्त का वशिष्ठ अनुभव दिखा रहे हैं ओशो
सोशल मीडिया: 27 अगस्त 2020: (मीडिया लिंक//मन के रंग डेस्क)
महाराष्ट्र में एक साधु था, एकनाथ। उसके पास एक व्यक्ति बहुत दिनों तक आया। और उस व्यक्ति ने अनेक दफा एकनाथ से बहुत से प्रश्न पूछे। एक बार उसने एक अजीब बात एकनाथ से पूछी, सुबह ही थी और एकनाथ अपने मंदिर में बैठे हुए थे। उस युवक ने आकर पूछा कि मैं आपको जानता हूं, बहुत दिन से जानता हूं और आपको जान कर मुझे कई तरह के विचार मन में उठते हैं, कई प्रश्न उठते हैं। एक प्रश्न मैं हमेशा छिपा लेता हूं, पूछता नहीं हूं, वह मैं आज पूछना चाहता हूं। एकनाथ ने कहा क्या है पूछो? उस युवा ने कहा कि मैं पूछना चाहता हूं, आपका बाहर से तो जीवन एकदम पवित्र है, लेकिन भीतर भी पवित्रता है या नहीं? आप बाहर से तो एकदम ही ईश्वरीय मालूम होते हैं, दिव्य मालूम होते हैं, लेकिन भीतर क्या है? मैं भीतर के संबंध में कुछ पूछना चाहता हूं? भीतर आपके पाप उठते हैं या नहीं? भीतर आपके बुराइयां पैदा होती हैं या नहीं? भीतर आपके विकार उठते हैं या नहीं?
एकनाथ ने कहा कि मैं अभी-अभी बताता हूं, एक और जरूरी बात तुम्हें बता दूं, कहीं मुझे भूल न जाए। कल अचानक मैंने तुम्हारा हाथ देखा तो मुझे दिखाई पड़ा कि तुम्हारी मृत्यु करीब आ गई है। सात दिन बाद तुम मर जाओगे तो यह मैं तुम्हें बता दूं और फिर तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूं, क्योंकि कहीं मुझे भूल न जाए, इसलिए मैं जल्दी बता दूं। एकनाथ ने कहा कि अब पूछो तुम क्या पूछते हो? वह युवक बैठा था खड़ा हो गया। उसने कहा कि मौका मिला तो मैं कल आऊंगा। उसके हाथ पैर कंपने लगे। एकनाथ ने पूछा इतनी जल्दी क्या है, सात दिन हैं, बहुत हैं, इतनी घबड़ाहट क्या है? और मरना तो सभी को पड़ता है। लेकिन वह युवक अब एकनाथ की बातें नहीं सुन रहा था। उसने पीठ फेर ली और वह मंदिर के नीचे उतरने लगा। अभी जब आया था तो पैरों में एक बल था, एक शक्ति थी, एक सामथ्र्य था। अब जब लौट रहा था तो दीवाल का सहारा लिए हुए था। जिसकी मौत सात दिन बात हो, वह बूढ़ा हो ही गया। उसके पैर कंपने लगे सीढ़ियों पर, वह रास्ते पर जाकर गिर पड़ा। बेहोश हो गया, लोगों ने उसे उठाया और घर पहुंचाया। उसके प्रियजन और उसके मित्र इकट्ठे हो गए, सब तरफ खबर फैल गई कि वह आदमी अब मरने के करीब है। सात दिन बात उसकी मृत्यु आ जाएगी।
सातवें दिन संध्या को जब सूरज डूबने को था और सारे घर के लोग रो रहे थे, पड़ोसी इकट्ठे थे और वह युवा बिस्तर पर लेटा हुआ था। एकनाथ उसके घर गए। वे जब अंदर पहुंचे तो वहां मौत का पूरा का पूरा वातावरण था। सारे लोग उनको देख कर रोने लगे। एकनाथ ने कहाः रोओ मत। मुझे जरा अंदर ले चलो। वे भीतर गए और उस व्यक्ति को उन्होंने हिला कर पूछा कि मेरे मित्र, एक बात पूछने आया हूं, सात दिन कोई पाप तुम्हारे भीतर उठा? कोई बुराई, कोई विकार। उस आदमी ने बहुत मुश्किल से आंखें खोलीं और उसने कहा कि आप भी एक मरते हुए आदमी से मजाक करते हैं। तो एकनाथ ने कहाः तुमने भी एक मरते हुए आदमी से मजाक किया था। एकनाथ ने कहा तुम्हारी मौत अभी नहीं आई है, तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दिया है।
जिसे मौत दिखाई पड़ने लगे, उसके भीतर पाप उठने अपने आप विलीन हो जाते हैं। विकार शून्य हो जाते हैं। और जिसे मौत दिखाई पड़ने लगे, उसके भीतर एक क्रांति हो जाती है। उसकी संसार के प्रति पीठ हो जाती है। और परमात्मा की तरफ उसका मुंह हो जाता है। एकनाथ ने कहाः तुम्हारी मौत अभी आई नहीं, तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दिया है। तुम उठ आओ, घबड़ाओ मत। और एकनाथ ने कहा कि सात दिन बाद मौत हो, या सात वर्ष बाद, या सत्तर वर्ष बाद, क्या फर्क पड़ता है? मौत का होना ही पर्याप्त है, दिनों की गिनती से कोई फर्क नहीं पड़ता है। या कि कोई फर्क पड़ता है? सात दिन बात मौत हो, या सत्तर दिन बाद, क्या फर्क पड़ता है? मौत का होना ही अर्थपूर्ण है। दिनों की गिनती कोई अर्थ नहीं रखती। एकनाथ ने कहाः मृत्यु है, जिस दिन यह मुझे पता चला, उसी दिन जीवन में क्रांति हो गई। उसी दिन मैं दूसरा आदमी हो गया। ---ओशो
संजीव वर्मा ने ओशो मेरा प्यार में 26 अगस्त बुधवार को सुबह सुबह फेसबुक पर पोस्ट किया
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