बस थोड़ा सा अभ्यास और मन बहुत अच्छा मित्र बन जाता है
मन के रहस्य बहुत गहरे हैं। ध्यान दो तो समझ भी आने लगते हैं और गंभीरता से न लो तो सारी सारी उम्र निकल जाती है लेकिन समझ नहीं आते। अगर गुरुबाणी कहती है मन जीते जग जीत तो बात बहुत सच्ची है। गहरी भी है। अगर मन को जीतना चाहो तो इतना ज़्यादा कठिन भी कुछ नहीं है। एक बार बुल्ले शाह पौदे लगा रहे थे तो किसी रह जाते जज्ञासु मित्र ने सवाल किया भगवान को कैसे पाया जाए? बुल्ले शाह बहुत ही सहजता से हँसते हुए बोले यह कौन सा मुश्किल काम? साथ ही पंजाबी शायरी--बुल्लिया रब दा की पाओणा-एधरों पुट्टणा ते ओधर लाउणा। अर्थात मन को दुनियादारी से हटा क्र भगवान की तरफ जोड़ लो। बिलकुल इसी तरह जैसे मैं यह पैदा इधर से उखाड़ कर उधर दूसरी जगह लगा देता हूँ। मन को साध लेना इसी सतत कोशिश का नाम है। इसी निरंतर साधना से भी सम्भव है। मन पर निगाह रखो तो मन भी समझने लगता है कि मालिक की नज़र है मुझ पर। इधर उधर नहीं भटकना।
इसी तरह विवेकानंद भी मन की चर्चा करते हुए मन की कमज़ोरियां भी समझाते हैं। बहुत सुंदर शब्दों में और बहुत ही संक्षिप्त शब्दों में विवेकानंद जी कहते हैं:यह समझना बहुत कठिन है, परंतु धीरे धीरे समझ सकोगे कि संसार की कोई भी वस्तु तुम्हारे ऊपर तब तक प्रभाव नहीं डाल सकती, जब तक कि तुम स्वयं ही उसे अपना प्रभाव न डालने दो। स्वामी विवेकानन्द जी को {वि.सा.- ३ : कर्मयोग: अनासक्ति ही पूर्ण आत्मत्याग है} में अधीन किया जा सकता है।
अपने निकटम विवेकानंद केंद्र से जुड़िये मन की बातें होगी और इस शक्ति का आप सदुपयोग कर सकेंगे।
No comments:
Post a Comment