वो बात दिलों में बाकी है! जज़्बात दिलों में बाकी है!
तन मन के बदलते रंगों ने
दाढ़ी के बदलते ढंगों ने
हमें याद दिलाया
देखो तो!
कितना कुछ हर पल बदल रहा!
कितना कुछ हर पल बदल रहा!
युग बदले!
मौसम बदल गए
जंग के मैदान भी बदल गए!
खुशियाँ और गम भी बदल गए!
कई तख्त-ओ-ताज भी बदल गए!
सडकें भी देखो बदल गई
अब बड़े बड़े पुल नए बने!
हाइवे के अब अंदाज़ नए!
खेतों के भी रंग रूप नए!
संसद का भवन भी बदल गया!
कानून के भी हैं राज़ नए!
बदलाहट के इस युग में अब
कई खान पान भी बदल गए!
पहले जैसे अब नाम नहीं!
पहले जैसे पैगाम नहीं!
पहले जैसी बोतल भी नहीं!
पहले जैसे अब जाम नहीं!
अब हाय हैलो कहते हैं!
चीची की ऊँगली मिलती है!
और हाथ से हाथ मिलाते हैं!
आलिंगन का अंदाज़ नहीं!
वो रेडियो वाले गीत नहीं!
वो फिल्मों वाली बात नहीं!
अब तामील-ए-इरशाद कहां!
अब शम्य फ़िरोज़ां भी न सुना!
सिलोन रेडियो कहाँ है अब!
बस बदलाहट की तेज़ी है!
बस बदलाहट की तेज़ी है!
जैसे हों बुलेट ट्रेन में हम!
अब चन्द्रमां पर जाना है!
वहां फार्म हाऊस बनाना है!
कोई बंगला बुक करवाना है!
बड़ी भागदौड़ में उलझे हैं!
क्या पीना है-क्या खाना है!
क्या खोना है--क्या पाना है!
क्या खोना और क्या पाना है!
रफ्तार बहुत ही तेज़ है अब!
जैसे हो राहू की माया
हर पल है साथ में इक साया!
जैसे केतू का चक्रव्यूह
सब फंस गए इसमें आ कर हम!
वापिस अब कैसे जाना है!
पल पल चन्द्रमा बदल रहा!
पूर्णिमा झट से गुज़र गई
अब अमावस भी चली गई!
मन में पर अभी अँधेरा है!
किसी वहम भ्रम ने घेरा है!
फिर भी ब्रहस्पति का साथ है अब!
कुछ प्यार सलीका बाकी है!
अपना अंदाज़ भी बाकी है!
दिल की आवाज़ भी बाकी है!
अब भी हम मिल कर बैठते हैं!
क्या यही करिश्मा कम तो नहीं!
दिल का हर राज़ भी बाकी है!
होठों पे गीत भी बाकी है!
दिल में अभी बात भी बाकी है!
हाँ रात अभी भी बाकी है!
लगता है कि जंग हार गए!
पर आग दिलों में बाकी है!
वो बात दिलों में बाकी है!
जज़्बात दिलों में बाकी है!
नफरत का अंधेरा बेशक है!
नफरत की आंधी बेशक है!
भाई से भाई लड़वाने की
साज़िश भी बेशक जोरों पर!
पर फिर भी आस तो बाकी है!
दिल में विश्वास भी बाकी है!
जो वार गए जानें अपनीं!
उनका वो साथ भी बाकी है!
हम आंधी में भी डटे हुए!
तूफानों में भी जुटे हुए!
हाथों में मशाल मोहब्बत की!
हम दुनिया बदलने बैठे हैं!
हम याद कबीर को करते हैं!
ढाई आखर माला जपते हैं!
सौगंध साहिर की खाते हैं!
उस सुबह का नाम ही जपते हैं!
हमें हर क़ुरबानी याद आई!
हर एक निशानी याद आई!
हमें गांधी जी भी याद रहे!
हमें गदर लहर भी याद आई!
वारिस हैं हमीं शहीदों के!
हर बात पुरानी याद आई!
हर एक कहानी याद आई!
हम जाग उठे-हम जाग रहे!
हम हर इक गली में जाएँगे!
हम हर इक घर में जायेंगे!
नई शमा रोज़ जलाएंगे!
हर सपना याद दिलाएँगे!
हर दिल में बात उठाएंगे!
सपने साकार कराएंगे!
हम जीत के जंग दिखलाएँगे!!
हम जीत के जंग दिखलाएँगे!!
-रेक्टर कथूरिया
19 नवंबर 2023 को रात्रि 10:45 बजे खरड़ वाले नूरविला में