Sunday, July 6, 2025

मिल जाये मुस्कान कोई; मौत का वरदान कोई!//रेक्टर कथूरिया

ज़िंदगी ने जो कहा था;  मौत ने भी सुन लिया था

पर हमीं वो सुन न पाए; जो मोहब्बत ने कहा था !

इसे  19 जून 2018 की रात्रि को लिखा था। इसके साथ अपना या मन का संबंध अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया। कोशिश जारी है लेकिन न जाने कहां से कोई धुंध सी आ कर रास्ते में रुकी हुई है। सब धुंधला धुंधला सा महसूस हो रहा है। ज़िंदगी ने क्या कहा था? मौत ने तो सुन लिया लेकिन सवाल है कि मैं खुद भी क्यूं नहीं सुन पाया? किस ने रोक रखा था मुझे ?  कौन बना था दीवार ? खैर आप काव्य रचना पढ़िए और बताइए कहां मात खा गई ज़िन्दगी? 

ChatGPT Image 
मिल जाये मुस्कान कोई;

मौत का वरदान कोई। 

देख ले कुछ दर्द मेरे;

काश अब भगवान कोई। 

भरम है भगवान का भी;

यूं ही डर शैतान का भी। 

मन शिवाला बन गया है;

डर  है पर अहसान का भी। 

दिल के अंदर वेदना है;

और ज़रा सी चेतना है। 

खेल भी अब सामने है;

पर किसे अब खेलना है !

आ रहा हर पल बुलावा;

छोड़ दे दुनिया छलावा;

तोड़ भी डाले ये बंधन;

इक तेरी चाह के अलावा ...! 

सोचता हूँ चल पड़ें अब;

उस तरफ भी हैं मेरे सब। 

कोई न लौटा वहां से;

देखते हैं कब मिलें अब !

ज़िंदगी ने जो कहा था;

मौत ने भी सुन लिया था। 

पर हमीं वो सुन न पाए;

जो मोहब्बत ने कहा था। 

                    ---रेक्टर कथूरिया

(19  जून 2018 की रात को करीब 10:55 बजे)