Saturday, September 14, 2024

मन के रंग तन और माहौल को कैसे प्रभावित करते हैं?

जीवन रहस्य:मन की शक्ति से दुनिया  का सामना आसान हो जाता है 

इस शक्ति को जगाना नामुमकिन नहीं होता थोड़ा मुश्किल बेशक हो 


जंगल के घर ठौर ठिकाने
: 15 मार्च 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//मन के रंग डेस्क):

तन पर डाले गए बाहरी रंग कैसा असर छोड़ते हैं मन की दुनिया पर 

मन के अंदर सचमुच बहुत शक्तिशाली और रहस्यमय होती   छुपी रहती हैं। सोइ रहती हैं। इस बात का अहसास बार बार महसूस भी हुआ करता है पर फिर भी अधिकतर लोग इस शक्ति से अभिन्न और अनजान से रह जाते हैं।  मन में गम या उदासी वाली कोई ऐसी बात उठती कि तन थक हार कर बैठ जाता। या फिर उदास करने वाला कुछ ऐसा विचार उठता कि निरशा का अंधेरा छाने लगता। कई बार ऐसा भी लगता कि सिर में दर्द सा उठने लगा है।  या फिर कोई और जिस्मानी समस्या खड़ी हो जाती। लगातार बारीकी से नोट किया तो तन के ये सभी झमेले मन की दुनिया से आए हुए लगते थे। चिंता भी हुई दवाओं पर भी सोचा लेकिन किसी सन्यासी मित्र से बात करना उचित लगा।  

उन्होंने कहा कि समस्या का स्रोत तो तुमने पकड़ लिया लेकिन आगे बढना भूल रहे हो। मैं समझ नहीं पाया तो उन्होंने कहा  जहां समस्या का स्रोत है वहीं पर ध्यान केन्द्रित करो। जैसे मन का असर तन पर पड़ता है उसी तरह तन का असर मन पर भी पड़ता है। उन्होंने मुझे कुछ मुद्राएँ और आसन भी बताए और खानपान का मार्गदर्शन भी किया। 

उनकी सलाह के मुताबिक साधक और जिज्ञासु ने हर रोज़ सुबह सुबह की शुद्ध हवा में प्राणायाम और कपालभाति करना शुरू किया। शुरुआत तो ज्यादा से ज़्यादा दस मिनट तक के समय से की गई थी लेकिन कुछ ही दिनों में यह समय बढ़ता  बढ़ता डेढ़ घंटे तक पहुंच गया। 

चेहरे पर रौनक और चमक भी बढ़ने लगी। आंखों के नीचे बने हुए काले से घेरे समाप्त होने लगे। दिन के समय सफ़र और काम के दौरान बार बार नींद का योर कम होने लगा और बिलकुल समाप्त भी गया। रात को नींद बड़े अनुशं से आनी शुरू हो गई। रत भर आराम की नींद का आनंदलेने के बाद सुबह सुबह साढ़े चार बजे बिना किसी अलार्म के नींद भी खुलने लगी। उठते समय ताज़गी का अहसास बढ़ने लगा। थकावट खत्म हो गई थी कब्ज़ की समस्या भी दूर होने लगी। इन रंगों का अब हर रॉय मिलने वाले भी नोटिस लेने लगे। 

बस इसी सादगी भरे प्रयोग से पता चला कि तन-मन और अंतरात्मा कितने अदृश्य धागे से बंधे होते हैं आपस में। कितनी मज़बूती के साथ है यह तारतम्य। अब इसे कोई सूक्ष्म शरीर कह ले या कुछ और लेकिन तन-मन और अंतरात्मा में कोई राबता तो जरुर है। 

इसके इलावा भी मन के रंग को तन और माहौल से प्रभावित करने में कई कारक होते हैं। यहां कुछ मुख्य कारक दिए गए हैं। समय और जगह की कमी के कारण संक्षिप्त चर्चा  ही रहेगी क्यूंकि इन सभी मुद्दों पर अलग से किताब भी बन सकती है। मन के रंग बहुत गहरे होते हैं और  मन की शक्ति का स्रोत भी होते हैं। 

इसी तरह अहमियत तो तन की भी कम नहीं होती है। तन पर भी बारीकी से सतर्क नज़र रखनी ही उचित रहती है। तन मन की इस दुनिया के अनुभवी लोगों के लोगों के अनुभव बताते हैं आपका शारीरिक स्वास्थ्य मन के रंग को प्रभावित करता है। योग, ध्यान, नियमित व्यायाम, और स्वस्थ आहार आपके मन को शांति, सकारात्मकता, और संतुलन प्रदान कर सकते हैं।

अधिकतम विश्राम और नींद के लिए भी ध्यान देना महत्वपूर्ण है। नींद की कमी मन को अधिक चिंतित और थका दिखा सकती है। लेकिन नींद की अधिकतता भी समस्या खड़ी कर सकती है। संतुलित सोना ही उचित रहता है। संतुलित भोजन और संतुलित व्यायाम आवश्यक होते हैं। 

शारीरिक रंगों और तरंगों का भी बहुत महत्व होता है। इनमें भी अपने मन और दूसरों के मन को प्रभावित करने की क्षमता होती है। उत्तेजित करने वाले रंगों का उपयोग करना मन को जागरूक कर सकता है, जबकि शांति और शांति के लिए हलके और शांत रंगों का उपयोग किया जा सकता है।

माहौल भी इस संबंध में असर डालता है। माहौल से मन के मूड में तब्दीली आती है। मन अधिक उत्साह में भी आ सकता है और निराशा में भी जा सकता है। इसमें शक्तियां जाग सकती हैं। इसीलिए साधना के लिए आवश्यक माहौल ढूंढ़ना या बनाना पड़ता है। 

आपके आसपास का माहौल मन के रंग को सीधे प्रभावित करता है। सकारात्मक और  सच्चे सहयोगी लोग, सुरक्षित और स्वागतमयी माहौल, और उत्सवी और प्रेरणादायक स्थितियाँ मन को उत्साहित कर सकती हैं। मन की रचनात्मकता बढ़ जाती है। 

विनाशकारी और नकारात्मक माहौल, तनाव, असुरक्षित स्थितियाँ, और नकारात्मक व्यक्तियों का सामना करने पर मन को परेशान और अस्वस्थ महसूस हो सकता है। इस माहौल का बहुत बुरा असर पढता है। इससे बचना ही उचित होता है। 

भवनों, कार्यालयों, और आवास की वातावरण का भी महत्व होता है। प्राकृतिक प्रकाश, हवा, और स्थिति की सफलता और संजीदगी आपके मन के रंग को प्रभावित कर सकती है।

मन के रंग को प्रभावित करने का यह प्रकार शारीरिक और मानसिक स्तर पर एक संतुलित जीवन जीने के माध्यम से किया जा सकता है। ध्यान देने योग्य माहौल, स्वस्थ आहार, और सकारात्मक विचार योग्य तरीके हैं जिनसे आप अपने मन के रंग को सुन्दर और सकारात्मक बना सकते हैं।

Monday, July 15, 2024

मन के रंगों का विज्ञान क्या है?

अगर इसे समझ गए तो ज़िंदगी बहुत आनन्दमयी बन जाएगी 


लुधियाना
: 14 जुलाई 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//मन के रंग डेस्क)::

सन 2001 में एक फिल्म आई थी-कभी ख़ुशी कभी ग़म---करण जौहर द्वारा लिखित और निर्देशित यह हिन्दी भाषा की पारिवारिक नाटक फ़िल्म बहुत हिट हुई थी। इसका निर्माण यश जौहर ने किया था। इस फ़िल्म में अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, शाहरुख खान, काजोल, ऋतिक रोशन और करीना कपूर प्रमुख भूमिका निभाते हैं जबकि रानी मुखर्जी विस्तारित विशेष उपस्थिति में नज़र आईं और बहुत यादगारी भी रहीं। इस फिल्म का नाम ही मन की उन बदलती हुई अवस्थाओं को याद दिलाता है जिनकी सही गिनता का भी शायद पता न लगाया जा सके। कभी ख़ुशी होती है, कभी गम होता है, कभी उदासी होती है और कभी निराशा और हताशा।  

आखिर मन के रंगों का विज्ञान क्या है?  इन रंगों का महत्व क्या है? इन बदलते हुए रंगों का स्रोत क्या है? कितनी तरह के हो सकते हैं मन के रंग? ज़िंदगी और सफलता को कैसे प्रभावित करते हैं यह रंग?

मन के रंगों का विज्ञान बहुत सीधा भी लगता है और बहुत गहरा और रहस्य्मय भी। विज्ञान के नज़रिये से देखें तो मन के रंगों का विज्ञान न्यूरोसाइकोलॉजी और न्यूरोसाइंस के अध्ययन पर आधारित है। मन पर नज़र रखने या इसे पढ़ने के लिए जब अध्ययन करते हैं कि किस प्रकार मस्तिष्क में रासायनिक प्रतिक्रियाएँ और न्यूरोट्रांसमीटर मनोदशा, भावनाओं और व्यवहार को प्रभावित करते हैं तो बहुत से हैरानीजनक परिणाम भी सामने आते हैं। इस पर असर करने वाले अलग अलग रसायन और  दवाएं भी जादू भरा असर दिखाते हैं। मन के रंग की मीडिया टीम ने इस संबंध में की गई पड़ताल के दौरान देखा कि इन दवाओं और रसायनों का असर बहुत तेज़ी से होता है मन की स्थिति को भी बदल देता है। थोड़ी देर के लिए लगता है कि मन अत्यधिक शक्तिशाली हो गया। यद्धपि वास्तव में ऐसा होता नहीं। मन पर यह रासायनिक असर बहुत ही सीमित समय के लिए होता है। आइए जानते हैं इन रसायनों के असर का कुछ संक्षिप्त सा विवरण। 

मन पर तेज़ी से असर डालने वाला एक रसायन होता है-डोपामाइन। इस रसायन का असर मन के आनंद और संतुष्टि की भावना से जुड़ा हुआ है। कुछ देर के लिए आनंद और संतुष्टि की ख़ुशी महसूस होती है। 

इसी तरह मन को तेज़ी से प्रभावित करने वाला एक रसायन होता है-सेरोटोनिन। यह रसायन मनोदशा को स्थिर करने में भी मदद करता है।

मन की  दुनिया के साथ नॉरएपिनेफ्रीन का भी गहरा संबंध है। इससे उत्तेजना और तनाव का स्तर काफी बढ़ जाता है। इस मामले में मन एक ऊंचाई पर पहुंचा हुआ महसूस होता है। हालांकि इसकी भी समय सीमा होती है। 

मन की कोमल और सूक्ष्म भावनाओं से सबंधित ऑक्सीटोसिन का असर भी कमाल का होता है।  यह सीधे और संवेदनशील रूप से स्नेह और संबंध की भावना से संबंधित है। इससे मन पर प्रेम और संबंध की भावनाएं बलवती होने लगती हैं। 

मन के इन रंगों का महत्व भी बहुत गहरा होता है। इन रंगों का असर बेशक सीमित समय के लिए ही होता हो लेकिन मन को बहुत गहरे तक और देर तक प्रभावित करता है। 

इन रंगों का महत्व इस बात में भी गहरायी से निहित है कि ये सभी रंग हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को कैसे प्रभावित करते हैं। मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य, संबंध, काम और समग्र जीवन की गुणवत्ता सभी इन रासायनिक प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करते हैं। 

यह सिलसिला इतना जटिल भी नहीं की समझ न आ सके लेकिन अगर इसे समझा न जाए या लापरवाही की जाए तो मन के रंग कईतरह की मुश्किलें भी खड़ी कर सकते हैं। इस मामले मैं आवश्यक बातों की चर्चा हम निकट भविष्य मी पोस्टों में करते रहेंगे। आज के लिए इतना ही।  

Sunday, May 19, 2024

कितने अजीब हैं हम//रेक्टर कथूरिया

इस जीवन चक्र में भी हम कविता ढूंढ़ने के प्रयास में रहते हैं!


सचमुच ज़िंदगी टुकड़ों में ही तो मिलती है--  

कहीं कम तो कहीं ज़्यादा मिलती है--

बालपन मिलता है और छूट जाता है--

या फिर छिन जाता है!

फिर यौवन आता है और वो भी छूट जाता है 

या फिर छिन जाता है..!

फिर बुढ़ापा आता है 

और वो भी छिन जाता है या छूट जाता है!

बहुत से सवाल हमारे ज़हन में भी आते हैं

फिर जवाब भी आते हैं---

कि यह सब तो महात्मा बुद्ध ने भी सोचा था---!

हम क्या ज़्यादा समझदार बन गए हैं?

हम भी वही कुछ सोचने लगे हैं!

फिर कोई खूबसूरत सुजाता भी सामने आती है--

खीर से भरा बर्तन भी लाती है---!

बरसों से सूखे तन को अमृत बूंदों से कुछ ताकत मिलती है!

अमृत ज्ञान की बरसात हुई लगती है!

फिर एक बेख्याली भी आती है!

उसी बेख्याली में जो कई ख्याल एक साथ आते हैं--

उनमें से एक ख्याल यशोधरा  का भी तो होता है!

जिसे ज्ञान प्राप्ति के चक्करों में 

अकेले सोती हुई छोड़ दिया था--

पलायन सिर्फ गौतम ने तो नहीं किया था..!

हम में से बहुत से लोग अब भी वही कर रहे हैं!

फिर राहुल की भी याद आती है--

उस बच्चे ने क्या बिगाड़ा था 

उसे बालपन में ही छोड़ दिया और भाग लिए ज्ञान के पीछे ..!

अतीत बहुत से सवाल पूछने लगा है--!

भविष्य अँधियारा सा लगने लगा है!

अब शब्द बहक भी जाएँ तो भी क्या होना है--!

अब कोई ख्याल महक भी जाए तो भी क्या होना है!

चिंताएं कल भी थीं-- 

चिंताएं आज भी हैं!

सवालों के अंबार पहले भी--आज भी हैं!

जवाब कब मिलेंगे.....?

       --रेक्टर कथूरिया 

Monday, November 20, 2023

लगता है जंग हार गए पर आग दिलों में बाकी है!

वो बात दिलों में बाकी है! जज़्बात दिलों में बाकी है!


तन मन के बदलते रंगों ने 

दाढ़ी के बदलते ढंगों ने 

हमें याद दिलाया 

देखो तो!

कितना कुछ हर पल बदल रहा!

कितना कुछ हर पल बदल रहा!

युग बदले!

मौसम बदल गए 

जंग के मैदान भी बदल गए!

खुशियाँ और गम भी बदल गए!

कई तख्त-ओ-ताज भी बदल गए!

सडकें भी देखो बदल गई

अब बड़े बड़े पुल नए बने!

हाइवे के अब अंदाज़ नए!

खेतों के भी रंग रूप नए!

संसद का भवन भी बदल गया!

कानून के भी हैं राज़ नए!

बदलाहट के इस युग में अब 

कई खान पान भी बदल गए!

पहले जैसे अब नाम नहीं!

पहले जैसे पैगाम नहीं!

पहले जैसी बोतल भी नहीं!

पहले जैसे अब जाम नहीं!

अब हाय हैलो कहते हैं!

चीची की ऊँगली मिलती है!

और हाथ से हाथ मिलाते हैं!

आलिंगन का अंदाज़ नहीं!

वो रेडियो वाले गीत नहीं!

वो फिल्मों वाली बात नहीं!

अब तामील-ए-इरशाद कहां!

अब शम्य फ़िरोज़ां भी न सुना! 

सिलोन रेडियो कहाँ है अब!

बस बदलाहट की तेज़ी है!

बस बदलाहट की तेज़ी है!

जैसे हों बुलेट ट्रेन में हम!

अब चन्द्रमां पर जाना है!

वहां फार्म हाऊस बनाना है!

कोई बंगला बुक करवाना है!

बड़ी भागदौड़ में उलझे हैं!

क्या पीना है-क्या खाना है!

क्या खोना है--क्या पाना है!

क्या खोना और क्या पाना है!

रफ्तार बहुत ही तेज़ है अब!

जैसे हो राहू की माया 

हर पल है साथ में इक साया!

जैसे केतू का चक्रव्यूह 

सब फंस गए इसमें आ कर हम!

वापिस अब कैसे जाना है!

पल पल चन्द्रमा बदल रहा!

पूर्णिमा झट से गुज़र गई

अब अमावस भी चली गई!

मन में पर अभी अँधेरा है!

किसी वहम भ्रम ने घेरा है!

फिर भी ब्रहस्पति का साथ है अब!

कुछ प्यार सलीका बाकी है!

अपना अंदाज़ भी बाकी है!

दिल की आवाज़ भी बाकी है!

अब भी हम मिल कर बैठते हैं!

क्या यही करिश्मा कम तो नहीं!

दिल का हर राज़ भी बाकी है!

होठों पे गीत भी बाकी है!

दिल में अभी बात भी बाकी है!

हाँ रात अभी भी बाकी है!

लगता है कि जंग हार गए!

पर आग दिलों में बाकी है!

वो बात दिलों में बाकी है!

जज़्बात दिलों में बाकी है!

नफरत का अंधेरा बेशक है!

नफरत की आंधी बेशक है!

भाई से भाई लड़वाने की 

साज़िश भी बेशक जोरों पर!

पर फिर भी आस तो बाकी है!

दिल में विश्वास भी बाकी है!

जो वार गए जानें अपनीं!

उनका वो साथ भी बाकी है!

हम आंधी में भी डटे हुए!

तूफानों में भी जुटे हुए!

हाथों में मशाल मोहब्बत की!

हम दुनिया बदलने बैठे हैं!

हम याद कबीर को करते हैं!

ढाई आखर माला जपते हैं!

सौगंध साहिर की खाते हैं!

उस सुबह का नाम ही जपते हैं!

हमें हर क़ुरबानी याद आई!

हर एक निशानी याद आई!

हमें गांधी जी भी याद रहे!

हमें गदर लहर भी याद आई!

वारिस हैं हमीं शहीदों के!

हर बात पुरानी याद आई!

हर एक कहानी याद आई!

हम जाग उठे-हम जाग रहे!

हम हर इक गली में जाएँगे!

हम हर इक घर में जायेंगे!

नई शमा रोज़ जलाएंगे!

हर सपना याद दिलाएँगे!

हर दिल में बात उठाएंगे!

सपने साकार कराएंगे!

हम जीत के जंग दिखलाएँगे!!

हम जीत के जंग दिखलाएँगे!!

          -रेक्टर कथूरिया 

19 नवंबर 2023 को रात्रि 10:45 बजे खरड़ वाले नूरविला में 

Sunday, May 28, 2023

जब महारानी की लाश ही चुरा ली गई

मेडिकल रिपोर्ट पढ़ कर सभी दंग रह गए 

सोशल मीडिया: 28 मई 2023: (मन के रंग डेस्क)::

कर्म अच्छा रहा हो या बुरा वे मन से ही निकले होते हैं यह बात अलग है कि दुनिया को केवल तन नज़र आता है। इन कर्मों के बदले में सज़ा मिले जा सम्मान-वे भी तन को ही मिलते हैं लेकिन वास्तविकता यह भी है कि कुछ  को छोड़ कर कर्मों के पीछे आम तौर पर मन और दिमाग का खेल ही चल रहा होता है। इस लिए इस मन को साधने के लिए भी बहुत सी साधनाएं समय समय पर आती रही हैं लेकिन इन बहुत ही गहरी साधनाओं का फायदा बहुत कम लोग ही उठा पाएं हैं अब तक। शायद इसलिए क्यूंकि उनके भीतर प्यास जाग चुकी थी। अगर बहु संख्यक लोग इन साधनाओं में रत्त हो जाते तो आज दुनिया का चेहरा कुछ और ही होता। दुनिया बहुत बेहतर हुई होती। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। मन के स्तर और तरंगों का आवश्यक विकास न हो पाने के कारण जो परिणाम निकले वे बेहद भयानक हैं। पढ़िए ओशो  के एक पुराने प्रवचन को जो गिरावट की इस इंतहा को दर्शाती है। इसे सोशल मीडिया पर प्रकाशित किया किताबों वाले कैफे ने। यह संस्थान किताबों के ज़रिए एक क्रांति लाने में जुटा हुआ है। मुख्य कार्यक्षेत्र पंजाबी किताबें ही हैं। आशा है भविष्य में और बहुत कुछ सामने आएगा। --रेक्टर कथूरिया 

शायद आपने सुना हो कि मिश्र की खूबसूरत महारानी क्लियोपैट्रा जब मर गई, तो उसकी कब्र से उसकी लाश चुरा ली गई और तीन दिन बाद लाश मिली और चिकित्सकों ने कहा कि मुर्दा लाश के साथ अनेक लोगों ने संभोग किया है।   (

मरी हुई लाश के साथ! और निश्चित ही ये कोई साधारण जन नहीं हो सकते थे जिन्होंने क्लियोपैट्रा की लाश चुराई होगी। क्योंकि क्लियोपैट्रा की लाश पर भयंकर पहरा था। ये जरूर मंत्री, वजीर, राजा के निकट के लोग, राजा के मित्र, शाही महल से संबंधित लोग, सेनापति इसी तरह के लोग थे। क्‍योंकि क्लियोपैट्रा की लाश तक भी पहुंचना साधारण आदमी के लिए आसान नहीं था। और चिकित्सकों ने कहा कि अनेक लोगों ने संभोग किया है। तीन दिन के बाद लाश वापस मिली।

आदमी की वासना कहा तक जा सकती है, कहना बहुत मुश्किल है। एकदम कठिन है। और महावीर कहते हैं ब्राह्मण वही है, जो कामवासना के ऊपर उठ गया हो। जिसे किसी तरह की वासना न पकड़ती हो। क्या यह संभव है? संभव है। असंभव जैसा दिखता है, लेकिन संभव है। असंभव इसलिए दिखता है कि हमें ब्रह्मचर्य के आनंद का कोई अनुभव नहीं है। हमे सिर्फ कामवासना से मिलने वाला जो क्षण भर का सुख है--सुख भी कहना शायद ठीक नहीं क्षण भर की जो राहत है, क्षण भर के लिए हमारे शरीर से जैसे बोझ उतर जाता है।

बायोलॉजिस्ट कहते हैं कि काम-संभोग छींक से ज्यादा मूल्यवान नहीं है। जैसे छींक बैचेन करती है और नासापुट परेशान होने लगते हैं, और लगता है किसी तरह छींक निकल जाए; तो हल्कापन आ जाता है। ठीक करीब-करीब साधारण कामवासना छींक से ज्यादा राहत नहीं देती है। बायोलॉजिस्ट कहते हैं जननेंद्रिय की छींक-शक्ति इकट्ठी हो जाती है भोजन से, श्रम से; उससे हलके होना जरूरी है। इसलिए वे कहते हैं, कोई सुख तो उससे नहीं है लेकिन एक बोझ उतर जाता है। जैसे सिर पर किसी ने बोझ रख दिया हो और फिर उतार कर आपको अच्छा लगता है। कितनी देर अच्छा लगता है? जितनी देर तक बोझ की याद रहती है। बोझ भूल जाता है, अच्छा लगना भी भूल जाता है।

यह जो कामवासना जिसका हम बोझ उतारने के लिए उपयोग करते हैं, और हमने इसके अतिरिक्त कोई आनंद नहीं जाना है, छोड़ना मुश्किल मालूम पड़ती है। क्योंकि जब बोझ घना होगा, तब हम क्या करेंगे? और आज की सदी में तो और भी मुश्किल मालूम पड़ती है, क्योंकि पूरी सदी के वैज्ञानिक यह समझा रहें हैं लोगो को कि छोड़ने का न तो कोई उपाय है कामवासना न छोड़ने की कोई जरूरत है। न केवल यह समझ रहे हैं, बल्कि यह भी समझा रहे हैं कि जो छोड़ता है वह नासमझ है, रूग्ण हो जाएगा; जो नहीं छोड़ता, वह स्वस्थ है।

ओशो, महावीर-वाणी--भाग 3

किताबों वाला कैफे से साभार//#ਕਿਤਾਬਾਂ_ਵਾਲਾ_ਕੈਫੇ_ 9914022845 


Saturday, November 26, 2022

तनाव मुक्त व सफल जीवन के लिए कार्यशाला आयोजित

Saturday 26th November 2022 at 6:20 PM

बहुत ही यादगारी रही डेराबस्सी में आयोजित हुई कार्यशाला 


एसएएस नगर: 26 नवंबर 2022: (मन के रंग डेस्क):: 

Pexels Photo By Mikhail Nilov 
मन में गड़बड़ी आ जाए तो इसका असर तन पर पड़ता है और तन में गड़बड़ी आ जाए तो इसका असर मन पर पड़ने लगता है। इसलिए दोनों को स्वस्थ रखना अत्यंत आवश्यक है। योग साधना से जहां तन अरोग रहता है वहीं मन भी स्वस्थ रहता है। तन मन दोनों को स्वस्थ रखने की कला सीखने के लिए एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया। 

राजकीय महाविद्यालय डेराबस्सी में शनिवार को प्राचार्य कामना गुप्ता के संरक्षण में तनाव मुक्त व सफल जीवन के लिए एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।  भारतीय योग एवं प्रबंधन संस्थान के सहयोग से आयोजित इस कार्यशाला में योग और ध्यान साधना में निपुण आचार्य साधना संगर ने कॉलेज के छात्रों को योग के सैद्धांतिक और दार्शनिक पहलुओं से परिचित कराया और उन्हें ध्यान और योग मुद्राओं का अभ्यास भी कराया। 

इस संबंध में और अधिक जानकारी देते हुए प्रधानाध्यापिका कामना गुप्ता ने कहा कि योग और ध्यान तन, मन और आत्मा के उन्नयन, अखंडता और स्वस्थ जीवन शैली के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। 

उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए उन्हें योग को अपनी जीवन शैली का अभिन्न अंग बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने श्रीमती साधना संगर को इस कार्यशाला के लिए धन्यवाद दिया। इस कार्यशाला के दौरान डॉ. सुजाता कौशल, प्रो. अमरजीत कौर, प्रो. अमी भल्ला, प्रो. राजबीर कौर, डॉ. नवदीप कहोल, प्रो. सलोनी, प्रो. नवजोत कौर, डॉ. हरविंदर कौर, प्रो. मनप्रीत कौर, डॉ. गुरप्रीत कौर, प्रो. मनीष आर्य, प्रो. गुरप्रीत कौर, प्रो. रश्मी, प्रो. जयतिका सेबा, श्रीमती सुमन, श्रीमती ज्योति, श्री हरनाम सिंह, श्री जोगिन्दर सिंह व विद्यार्थी उपस्थित थे।

बहुत हीअच्छा हो अगर इस तरह के और आयोजन सभी ज़िलों के सभी गांवों में भी किए जा सकें। 

समाजिक चेतना और जन सरोकारों से जुड़े हुए ब्लॉग मीडिया को मज़बूत करने के लिए आप आप अपनी इच्छा के मुताबिक आर्थिक सहयोग भी करें तांकि इस तरह का जन  मीडिया जारी रह सके।

Tuesday, September 27, 2022

दुनिया की यात्रा करने से पहले देश के पर्यटन स्थल घूम लीजिए

प्रविष्टि तिथि: 27th  September 2022 at 6:35 PM by PIB Delhi

 उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार 2018-19 प्रदान किए 


नई दिल्ली: 27 सितंबर 2022: (पीआईबी//इनपुट मन के रंग)::

यह बात बिलकुल एक हकीकत है कि पर्यटन केवल सैर सपाटा नहीं होता। इससे मन के रंग भी प्रभवित होते हैं। बहुत से स्थान हैं जहां जाने मात्र से ही मन की निराशा दूर होती है ,दिल की धड़कनें संतुलित होती हैं और दिमाग में छुपी चिंताएं भी दूर होती हैं। बहाना धार्मिक भी हो सकता है और शिक्षा या रोज़गार भी लेकिन प्रकृति के नज़दीक पहुंच कर निश्चय ही बहुत से लाभ मिलते हैं।  

पर्यटन और दुनिया की चर्चा करते हुए उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने भारत को 'पर्यटन के लिए स्वर्ग' कहा है। उन्होंने भारतीयों से विदेश घूमने से पहले देश के पर्यटन स्थलों को देखने के लिए कहा। भारत के सभ्यतागत इतिहास और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का जिक्र करते हुए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देश के अधिकांश पर्यटन स्थलों का हमारे इतिहास, लोक कलाओं और प्राचीन ग्रंथों से गहरा संबंध है। इनके नज़दीक पहुँच कर ही महसूस होता है मन के रंगों में सकारत्मक बदलाव। हमारे तन मन में सुप्त शक्तियों के जागने का अहसास। 

केवल तन मन नहीं अर्थ व्यवस्था भी सुधरती है। पर्यटन से आर्थिकता भी जुडी होती है कारोबार से बहुत से घरों परिवारों की आजीविका भी चलती है। नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आज वर्ष 2018-19 के लिए राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार प्रदान करने के बाद सभा को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने पर्यटन को देश में आर्थिक विकास और रोजगार सृजन का एक प्रमुख वाहक बताया। जिन लोगों को इसी से रोज़गार मिलता है किसी समय हम उनकी सफलता से भरी कहानियां भी आप तक लाएंगे। 

इसके साथ ही आता सेहत और आरोग्य का संसार। पर्यटन के विविध आयामों का जिक्र करते हुए, उपराष्ट्रपति ने चिकित्सा पर्यटन के क्षेत्र में भारत की अपार संभावनाओं के साथ-साथ आयुर्वेद और योग जैसी चिकित्सा की हमारी प्राचीन पद्धतियों में बढ़ती वैश्विक रुचि का पूरी तरह से लाभ उठाने की आवश्यकता पर बल दिया।

इस मकसद के लिए अब तकनीकी विकास भी तेज़ी से हो रहा है। किस क्षेत्र में कब और कैसे जाना चाहिए इसका पता अब घर बैठे इंटरनेट से लगाया जा सकता है। टिकट बुकिंग और आवास बुकिंग जैसी सुविधाएं भी चलने से पहले ही सुनिश्चित हो जाती हैं। देश में पर्यटन क्षेत्र के विकास के लिए सरकार के प्रयासों की सराहना करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि पर्यटन के बुनियादी ढांचे के विकास के साथ-साथ 'देखो अपना देश' और 'उत्सव पोर्टल' जैसी नवीन पहल की गई है।

उपराष्ट्रपति श्री धनखड़ ने आजादी का अमृत महोत्सव के तहत कई गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियों को सामने लाने के लिए पर्यटन और संस्कृति मंत्रालयों की प्रशंसा की। यह एक ऐसा कार्य है जिसकी अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन ब्योरे संभालना नामुमकिन जैसा था लेकिन इन मंत्रालयों से जुड़े लोगों ने यह सब भी किया है। 

इस क्षेत्र से जुड़े पुरस्कारों की बात भी ज़रूरी है। यात्रा और पर्यटन क्षेत्रों को प्रेरित करने में राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कारों के महत्व की बात करते हुए, उपराष्ट्रपति ने पुरस्कार विजेताओं को उनकी कड़ी मेहनत और उत्कृष्टता के लिए बधाई दी। उन्होंने आज से ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ प्रतिष्ठित सप्ताह मनाने के लिए पर्यटन मंत्रालय को भी बधाई दी। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने 'इंडिया टूरिज्म स्टैटिस्टिक्स 2022' और एक ई-बुक गो बियान्ड: उत्तर भारत के 75 अनुभव जारी किए

इस अवसर पर केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री श्री जी किशन रेड्डी, पर्यटन और संस्कृति राज्य मंत्री अजय भट्ट, पर्यटन मंत्रालय के सचिव श्री अरविंद सिंह, मंत्रालय में अपर सचिव श्री राकेश कुमार वर्मा, पर्यटन मंत्रालय के महानिदेशक श्री जी. कमला वर्धन राव समेत अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

पूरा भाषण निम्नलिखित है:

'विश्व पर्यटन दिवस की बधाई!

वर्ष 2018-19 के लिए राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कारों के अवसर पर आप सभी के बीच यहां उपस्थित होना सौभाग्य की बात है। यह उद्योग हितधारकों के प्रयासों को मान्यता देने और उनका सम्मान करने का अवसर है।

आज से ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ प्रतिष्ठित सप्ताह मनाने के लिए पर्यटन मंत्रालय को बधाई।

आजादी का अमृत महोत्सव प्रेरक और उत्साहवर्धक माहौल तैयार कर रहा है। इन प्रयासों ने हमारी संस्कृति से प्रामाणिक रूप से जुड़ने के लिए दुर्लभ और बेहद जरूरी अवसर प्रदान किया है।

राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार समय के साथ यात्रा, पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्रों में उपलब्धियों की प्रतिष्ठित मान्यता के रूप में उभरा है। ये पुरस्कार इन क्षेत्रों को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं।

यात्रा और पर्यटन दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक क्षेत्रों में से एक हैं, जो दुनियाभर में निर्यात और समृद्धि बढ़ाते हैं। भारत वास्तव में पर्यटन के लिए स्वर्ग है।

भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को देखिए, (जिसमें देशभर में फैली विविध पारिस्थितिकी, भूभाग और प्राकृतिक सुंदरता शामिल है) पर्यटन में आर्थिक विकास और रोजगार के चालक के रूप में अद्भुत सामर्थ्य है।

हमारे आसपास की नई चीजों का पता लगाने, देखने और अनुभव करने की इच्छा एक सहज मानवीय गुण है। भारत एक प्राकृतिक गंतव्य है, जिसे प्रकृति ने भरपूर उपहार सौंपे हैं।

हममें से जो लोग दुनिया में घूमने के लिए जाते हैं, उन्हें पहले अपने देश के पर्यटन स्थलों को देखने की जरूरत है।

हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों से लेकर ओडिशा के रेतीले समुद्र तटों तक, राजस्थान के रेगिस्तान से लेकर सुंदरबन के डेल्टा क्षेत्रों तक, असम के चाय बागानों से लेकर केरल के बैकवाटर तक, ये सब रोमांचक और शानदार हैं।

भारत शायद अकेला ऐसा देश है, जहां एक ही यात्रा में कई जरूरतें पूरी की जा सकती हैं।

हमारे सभ्यागत इतिहास और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के चलते अधिकांश पर्यटन स्थलों का पौराणिक अतीत, लोक नृत्य रूपों और प्रांचीन ग्रंथों से गहरा नाता है।

मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में अब चीता, रणथंभोर में बाघ और गिर के जंगलों में शेर देखे जा सकते हैं।

देश में पर्यटन के क्षेत्र के विकास के लिए सरकार 360 डिग्री का दृष्टिकोण अपना रही है।

पर्यटन के लिए बुनियादी ढांचे के व्यापक और अभिनव विकास के साथ-साथ रेल, सड़क और हवाई संपर्क को बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया गया है जिससे देश के सभी कोनों से पर्यटन स्थलों पर पहुंचना आसान हो।

देश की विविध संस्कृति, विरासत, स्थलों और पर्यटन उत्पादों को प्रदर्शित करने में मंत्रालय की शानदार पहल 'देखो अपना देश' सफल रही है।

पर्यटन क्षेत्र में रोजगार सृजन सरकार के प्रमुख एजेंडे में से एक है।

दि इनक्रेडिबल इंडिया टूरिस्ट फैसिलिटेटर (आईआईटीएफ)- सर्टिफिकेशन कार्यक्रम और देशभर में कार्यक्रमों, त्योहारों और लाइव दर्शन दिखाने के लिए मंत्रालय द्वारा शुरू की गई डिजिटल पहल ‘उत्सव पोर्टल’ शानदार है।

इंटरनेट कनेक्टिविटी और सोशल मीडिया के इस दौर में, वर्चुअल स्पेस भी पर्यटकों को बेहतरीन अनुभव प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत में चिकित्सा पर्यटन के क्षेत्र में जबर्दस्त संभावनाएं हैं और हमें समग्र स्वास्थ्य की तलाश में आने वाले अधिक से अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए आयुर्वेद और योग जैसी चिकित्सा की हमारी प्राचीन पद्धतियों का पूरी तरह से लाभ उठाने की जरूरत है। इसमें पहले से ही लोग काफी दिलचस्पी ले रहे हैं।

पर्यटन उद्योग में सभी हितधारकों के लिए यह उचित होगा कि वे पारिस्थितिक रूप से जिम्मेदार और स्थायी पर्यटन प्रथाओं का पालन करें।

पर्यटकों को भी अपनी ओर से 'स्वच्छ भारत अभियान' को ध्यान में रखना चाहिए और ऐतिहासिक स्मारकों पर लिखने या उसे विकृत करने से बचना चाहिए।

पुरस्कार विजेताओं और इस तरह के प्रतिष्ठित आयोजन के लिए पर्यटन मंत्रालय को बधाई।'

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