Friday, November 7, 2025

मुझे किस तरह से मिली ऐतिहासिक किताब "मां"

अक्टूबर क्रांति अर्थात सात नवंबर को समरण करते हुए विशेष पोस्ट  

साहित्य के रंग भी मन के रंगों को प्रभावित करते रहे 

इसी ने दी ज्ञान की रौशनी और दिखाया रास्ता 


नई दिल्ली की भूमि रहा इसका खोज क्षेत्र: सात नवंबर 2025: (रेक्टर कथूरिया// मन के रंग डेस्क)::

मैक्सिम गोर्की 

मन से जुड़ा गैर-फ़िल्मी साहित्य बहुत बार अपना जादू दिखाता रहा है। गीत और फ़िल्में तो उस की रचना के प्रमाण साबित करने वाली बहुत बाद की बातें हैं। पहले शब्द ही अपना रंग दिखाते रहे हैं। इन्हीं रंगों से तन और मन के रंग प्रभवित भी होते तरहे हैं। आपको याद होगा सोवियत संघ भी और रूस भी। रूर में सन 1905 की  क्रान्ति को रूस की नाकाम क्रान्ति गिना जाता रहा है। अंतिम जीत से पहले इस तरफ की असफलताएं भी अक्सर ज़रूरी बन जाती हैं। 

वास्तव में 1905 की रूसी क्रांति ज़ार के निरंकुश शासन के खिलाफ मजदूरों, किसानों और सैनिकों के व्यापक असंतोष और अशांति का एक बेहद निकर्षजनक दौर था। लोग बेदिल से होने लगे थे। इसी दौर में जो "खूनी रविवार" की घटना के बाद भड़की थी उससे निराशा भी फैली और गुस्सा भी। लेकिन इस नाकाम क्रांति के परिणामस्वरूप भी ज़ार ने सुधारों का वादा ज़रूर किया।  साथ ही एक संसद, ड्यूमा की स्थापना भी कर दी। उसे लगता था शायद लोगों का विद्रोह शांत हो जाए। ऐसा न होना था न ही हुआ। 

इस सब के चलते ज़ार ने निरंकुश शक्ति की अलोकतांत्रिक परंपरा बनाए बनाए रखी। उसने सुधार का दिखावा किया था लेकिन वह सुधरा नहीं था। सियासत पर नज़र रखने वाले गहराई से सब देख रहे थे। उनकी नज़रों ने बहुत कुछ ऐसा भी देखा जो सामने नज़र नहीं आ रहा था लेकिन उसके संकेत स्पष्ट थे। इसीलिए यह क्रांति भविष्य की उथल-पुथल का एक महत्वपूर्ण पूर्वाभ्यास भी मानी जाती है।

सन 1905 की यह क्रांति बेशक नाकाम हो गई थी लेकिन क्रांति के संकल्प में कमी नहीं आई थी। क्रान्ति की ज़ोरदार कोशिशों का सिलसिला जारी था। मुख्य कारण कई थे लेकिन इनमें से आर्थिक और सामाजिक असंतोष मुख्य ही था। श्रमिकों और किसानों के जनजीवन की विकट आर्थिक स्थितियां और कठोर श्रम वातावरण के अंसतोष को बढ़ाने का काम ही कर रहा था। 

इसी बीच रूसी-जापानी युद्ध से भी कई उम्मीदें थी। इस युद्ध में रूस की अपमानजनक हार से उम्मीदें टूट गई थी और नाउम्मीदी बढ़ गई थे लेकिन इन सब से भी जनता के असंतोष को और बढ़ावा मिला। लोगों का जोश कम नहीं हुआ था। 

राजनीतिक दमन भी बढ़ता रहा लेकिन वह जना क्रोश को दबाने में सफल नहीं हो सका। सरकार के विरुद्ध बढ़ता असंतोष एक नै क्रांति के आधार को और मज़बूत बना रहा था। इस बेचैनी के दौर में नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग शामिल थी और तेज़ी से उभर रही थी। 

यह वो हालात थे जब 1905 वाली क्रान्ति की कोशिशें नाकाम हो गई थी। उम्मीदें टूट चुकी थी फिर भी कहीं न कहीं राख में कुछ चिंगारियां बाकी थी। इनका सुलगना नज़र नहीं आ रहा था लेकिन अस्तित्त्व तो था। सबसे अधिक काले  दिनों के दौर में भी मैक्सिम गोर्की का दिल और दिमाग उम्मीदों से भरा था हुआ। उसे अपने नावल मां की कहानी बुनते हुए एक साधारण महिला मां के रूप में नायिका बन कर सामने आई। इस नावल ने नायिकत्व की भूमिका निभाई भी। वाम और क्रान्ति की तरफ अनगिनत लोग इस नावल मां को पढ़ कर ही आकर्षित हुए। कहा जा सकता है कि इस पुस्तक ने लोगों को बहुत बड़ी संख्या में आकर्षित किया। 

इस नावल से मेरी भेंट भी बहुत अनूठी थी। एक बहुत लंबी परीक्षा थी मेरे और इस पुस्तक के लगाव की। इस पुस्तक की तलाश काफी समय तक जारी रही। जहां जहां इसके मिलने की संभावना थी वहां तो यह कभी मिली नहीं लेकिन जहां जहां ऐसी कोई उम्मीद नहीं थी वहां यह मिल भी जाती रही। लेकिन बस इतना ही पता चलता की इस दूकान, दफ्तर या फिर लायब्रेरी में यह पुस्तक है। जेब खाली थी इस लिए इसे ख़रीदना मेरे बस में भी न यहीं था। वास्तव पिता जी राजनैतिक कारणों से भूमिगत थे। बहुत से रिश्तेदार भी हमसे दूरी बना चुके थे। पुलिस के आतंक से ऐसा माहौल बनना स्वभाविक ही था। बहुत सी संपतियां क़ानूनी तौर पर हमारी हो कर भी हमारे पास नहीं रही। हर रोज़ अनजानी मुसीबतों का दौर सा था। हाँ इंसान शक से भरा लगता जैसे वह हमारे मामले में आया हो। धीरे धीरे सब ठीक भी होने लगा लेकिन ज़िन्दगी नार्मल होने में बहुत समय लगा। गुरुद्वारा साहिब जाते समय भी बहुत सी आशंकाएं घेरे रखतीं। जहाँ हम रह रहे थे वह मकान किसी धार्मिक परिवार का था। वहां भाई वीर सिंह रचित कलगीधर चमत्कार के दोनों भाग पढ़े। बहुत ऊर्जा मिलती थी उन्हें पढ़ते हुए। 

ऐसे में मैंने जिन पुस्तकों के नाम सुने और इन्हें पढ़ने की इच्छा भी व्यक्त की उन पुस्तकों में मैक्सिम गोर्की की यह महान रचना मां भी थी। कुछ लोगों से बोला भी कि मुझे कोई यह पुस्तक गिफ्ट कर दो लेकिन सभी मुझ पर हंसते और कहते आखिर कामरेड परिवार से ही हो न! चिंता न करो जल्दी पढ़ लोगे। पुस्तक बहुत समय तक नहीं  मिल सकी। 

दौड़ते भागते हम लोग दिल्ली में पहुंच गए क्यूंकि पंजाब के हालत हमारे लिए भी ज़्यादा खराब थे। मेरी उम्र शायद दस या ग्यारह बरस हो चुकी थी। घर में राशन कभी होता और कभी नहीं भी होता। पिता जी का कुछ पता नहीं था कि वह कहाँ है और किस हाल में हैं?। मैं और मां दिल्ली जैसे बड़े महानगर में रहने के बावजूद एक बस्ती के एक छोटे से कमरे में रहते थे। इन सभी तंगियों के बावजूद हम लोगों ने अख़बार पढ़ना नहीं छोड़ा था। वहां अखबार सुबह मुँह अँधेरे ही आ जाया करती थी। 

वक़्त निकलता जा रहा था लेकिन भूख प्यास तो हर रोज़ लगने लगती। इसका सिलसिला रुकता ही नहीं था। इस भूख से भागने के लिए मैंने लायब्रेरी में जाना शुरू किया। हमारे नज़दीक ही रेडियो कॉलोनी हुआ करती था। सड़क के इस तरफ हम थे जिसे कुछ लोग धक्का कॉलोनी कहते और कुछ लोग ढक्का कॉलोनी। सड़क के किनारे थी यह ढक्का कॉलोनी। घर से निकल कर सड़क किनारे पहुँचते तो पीठ पीछे था यह इलाका।  

बायीं तरफ जाने वाली बस या ऑटो पकड़ लो तो किंग्ज़वे कैंप आ जाता। दायीं तरफ चलो तो निरंकारी कॉलोनी जहाँ बस का रुट समाप्त हो जाता था। सड़क को पार कर लो तो रेडियो कॉलोनी और उसके साथ सटी छोटी सी  सड़क वाला रास्ता पकड़ते तो मॉडल टॉऊन आ जाता और उसके बाद कई और रस्ते  भी। 

उस रेडियो कोलोनी के अंदर जा कर ही तकरीबन चार कमरों वाली लायब्रेरी आ जाती थी और गेट में दाखिल हुआ बिना बाहर से निकल जाओ तो साथ सटी सड़क मॉडल टाउन चली जाती।  उसी कॉलोनी में स्थित था सामुदायिक केंद्र और इसी केंद्र में थी सरकारी लाइब्रेरी भी।  तब तक मुझे हिंदी पढ़ना लिखना भी आ गया था। इसलिए वहां मौजूद लायब्रेरी में बैठ  कर मैं वे सभी अखबारें पढ़ता जिन्हें हर रोज़ खरीदना मेरे बस में नहीं था उन दिनों। 

दैनिक नवभारत टाईम्ज़ और दैनिक हिंदुस्तान अख़बारों के साथ साथ धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान, कादम्बिनी. जाह्नवी, सरिता मुक्ता, चम्पक और बहुत सी अन्य अखबारें और पत्र पत्रिकाएं इसी लायब्रेर में पढ़ी। लायब्रेरी का स्टाफ सारा दिन देखता... कि यह बच्चा लगातार सारा सारा दिन यहाँ बैठ कर पढता है लेकिन खाता पीता कुछ  भी नहीं।  एक दिन एक मैडम मुझे बाहर परके में बुलाने आई कि चलो सर बुला रहे हैं। मुझे लगा बस अब लाइब्रेरी आना बंद हो जाएगा न जाने कौन सा एतराज़ लगाने की तैयारी में हैं। 

 उन्होंने मुझे चाय पिलाई, साथ में दो मट्ठियां भी। साथ ही कहा यह चाय और मट्ठियां हमारी तरफ से पक्की हो गई। आप हमारे स्टाफ के साथ ही पियोगे हमारी तरफ से।  बस अंदर आ कर बैठा करो। एक मेज़ और कुर्सी भी दे दी गई। एक पेन्सिल, बाल पेन और नोटबुक भी। धीरे धीरे मैं उनके साथ कुछ काम भी करवाने लगा। 

फिर वो कई बार मुझे कुछ पैसे भी देने लगे। वे मुझे किसी होब पर भी ऐडजस्ट करना चाहते थे लेकिन मेरी उम्र बहुत छोटी थी। एक दिन मैंने पुछा क्या मुझे मैक्सिम गोर्की के नावल मां को पढ़ सकता हूँ? क्या यह पुस्तक यहाँ उपलब्ध है? यह सुन कर स्टाफ के इंचार्ज ने मुझे बहुत ध्यान से देखा और वहां अपनी एक सहायक से कहा कि इस किताब को अभई ढून्ढ कर लाओ। सहायक के लिए ज़रा भी मुश्किल नहीं था। वह तुरंत इस पुस्तक को ले आई। इंचार्ज साहिब ने यह पुस्तक मुझे दी और कहा पूरे मनोटोग से पढ़ना इसे पढ़ने में दो दिन लगें या बीस दिन लगें। 

इस तरह मिली मुझे यह ऐतिहासिक किताब "मां"इसे पढ़ने के बाद भी काफी कुछ हुआ। इस संबंध में भी कई दिलचस्प कहानियां हैं। इन की चर्चा जल्द ही किसी अलग पोस्ट में। 


Saturday, September 27, 2025

जब आपका मूड खराब होने लगे तो.....

Research and Got on Tuesday 20th June 2023 at 01:13 PM Regarding Colors of Mind

यहां कुछ प्रेक्टिकल टिप्स हैं जिन्हें आप भी अपना सकते हैं 

चंडीगढ़: 23 सितंबर 2025: (मीडिया लिंक रविंद्र//मन के रंग डेस्क):: AI का सहयोग भी रहा 

Pexels Photo By Mikhail-Nilov
ज़िन्दगी में जब जब भी मूड खराब होता है तो तो सब कुछ गड़बड़ा जाता है। फिर उम्र कुछ भी हो, इलाका कुछ भी हो या शरीर कैसा भी हो। मूड गड़बड़ाए तो कुछ भी करने का मन नहीं रहता। खान पान और घूमना भी नीरस लगने लगता है। ऐसे में ध्यान से देखा जाए तो तन भी मूड की इस खराबी से बुरी तरह प्रभविति होता है। बरसों पहले भी इस तरह की समस्या हुआ करती थी लेकिन मामला गंभीर नहीं हुआ करता था। लोग गली मोहल्ले का चक्कर लगाते तो मूड ठीक हो जाता। घर में चाय कॉफी पीने से भी मूड बदल जाया करता था। शराब जैसी ड्रिंक्स एक तरह से आखिरी हथियार हुआ करती थी। कुछ लोग सिगरेट पी कर भी ठीक हो जाते। बहुत से लोग ठीक भी हो जाते लेकिन कई बार यह सब भी बेअसर रहता। मूड की खराबी कई बार गंभीर हो जाती है। 

ऐसे में बड़े बज़ुर्ग अक्सर सलाह भी देते कि थोड़ा सा विश्राम करें सब ठीक हो जाएगा। वे अक्सर कहते कि अपने मन और शरीर को आराम देने के लिए समय निकालें। नींद से एक जादुई रिलैक्सेशन मिलती भी है। थोड़ी सी झपकी और यूं लगता कि तन मन दोनों की आवश्यक रिपेयर सी हो जाती। शरीर में नयी स्फूर्ति सी आ जाती। इस प्रयास के साथ साथ ही शांति और आत्म-पोषण के लिए मेडिटेशन, योग या दिनचर्या में शामिल होने वाली आरामपूर्ण गतिविधियों का भी आनंद लिया जाता। कुछ मिंट बैडमिंटन का खेल या फिर कोई छोटी सी दौड़ या जॉगिंग से भी मूड सही राह पर आ जाता। कोई अच्छा संगीत भी मन की शक्ति को बढ़ा देता है। नई ऊर्जा मिलती है मूड को भी। 

कई बार किसी मन मिलने वाले अच्छे मित्र, साथी,  दोस्त या परिवार से बातचीत करना भी तुरंत अच्छा परिणाम देता। अपने दिल की बात किसी विश्वसनीय दोस्त या परिवारिक सदस्य के साथ साझा करें। उन्हें आपका मनोवैज्ञानिक स्थिति का तकरीबन हर छोटा बड़ा पहलू पता होता है। उन्हें स्पष्ट हो कर समझाएं और उनका साथ और समर्थन पाएं। नतीजे बहुत अच्छे निकलेंगे। चाहें तो समझकर देख लें। 

साथ हो यह भी ज़रूरी है कि सकारात्मकता के साथ अपने रिश्तों का समीक्षण भी करें।  इससे संबंध और रिश्ते मज़बूत होते हैं। कभी-कभी, मूड खराब होने का कारण हमारे रिश्तों में आपसी संघर्ष, असंतोष या निराशा भी पैदा होने लगती है। इस संदर्भ में, आप अपने रिश्तों को समीक्षा कर सकते हैं और सकारात्मक परिवर्तन के लिए कोई कदम उठा सकते हैं। ऐसी समीक्षा फायदा ही पहुंचाती है। 

मूड को ठीक करने के लिए एक तरीका यह भी है कि अपनी प्रिय गतिविधियों में वक्त ज़रूर बिताएं। जो गतिविधियाँ आपको खुश करती हैं, उनमें खुद को व्यस्त रखें। ऐसाम करने से एक नई ऊर्जा भी मिलती है। उनमें समय बिताएं। यह आपकी मनोदशा को सुधारने और आपको प्रोग्रेसिव और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी।

इन सब से अलग और विशेष ज़रूरत यह भी है कि पूरी तरह से स्वस्थ रहें। इस तरह हर पहलु से अपने शरीर का ध्यान भी पूरी सतर्कता से रखें। समय पर नींद पूरी करें, स्वस्थ आहार लें और नियमित रूप से व्यायाम करें। यह आपके मूड को सुधारने में मदद कर सकता है। यह आपको नई शक्ति भी झट से दे सकता है। 

इसी दिशा में आखिरी सलाह मेडिकल परीक्षण की भी है। यदि आपका मूड अक्सर ही खराब रहता है और लंबे समय तक बढ़ जाता है, और आपको अपने जीवन में रुचि और आनंद का अहसास नहीं होता है, तो यह बेहतर होगा कि आप किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की सलाह लें। यह स्थिति गंभीर है और मानसिक रोगों की तरफ इशारा करती है। मेडिकल तौर पर अच्छी जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ आपको सही मार्गदर्शन और उपचार प्रदान कर सकते हैं। दवाओं के साथ साथ अच्छी एक्सरसाइज़, अच्छा खानपान और लाईफ स्टाईल आपको बहुत सी जादुई शक्ति देने लगता है।     ----------


Sunday, July 6, 2025

मिल जाये मुस्कान कोई; मौत का वरदान कोई!//रेक्टर कथूरिया

ज़िंदगी ने जो कहा था;  मौत ने भी सुन लिया था

पर हमीं वो सुन न पाए; जो मोहब्बत ने कहा था !

इसे  19 जून 2018 की रात्रि को लिखा था। इसके साथ अपना या मन का संबंध अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया। कोशिश जारी है लेकिन न जाने कहां से कोई धुंध सी आ कर रास्ते में रुकी हुई है। सब धुंधला धुंधला सा महसूस हो रहा है। ज़िंदगी ने क्या कहा था? मौत ने तो सुन लिया लेकिन सवाल है कि मैं खुद भी क्यूं नहीं सुन पाया? किस ने रोक रखा था मुझे ?  कौन बना था दीवार ? खैर आप काव्य रचना पढ़िए और बताइए कहां मात खा गई ज़िन्दगी? 

ChatGPT Image 
मिल जाये मुस्कान कोई;

मौत का वरदान कोई। 

देख ले कुछ दर्द मेरे;

काश अब भगवान कोई। 

भरम है भगवान का भी;

यूं ही डर शैतान का भी। 

मन शिवाला बन गया है;

डर  है पर अहसान का भी। 

दिल के अंदर वेदना है;

और ज़रा सी चेतना है। 

खेल भी अब सामने है;

पर किसे अब खेलना है !

आ रहा हर पल बुलावा;

छोड़ दे दुनिया छलावा;

तोड़ भी डाले ये बंधन;

इक तेरी चाह के अलावा ...! 

सोचता हूँ चल पड़ें अब;

उस तरफ भी हैं मेरे सब। 

कोई न लौटा वहां से;

देखते हैं कब मिलें अब !

ज़िंदगी ने जो कहा था;

मौत ने भी सुन लिया था। 

पर हमीं वो सुन न पाए;

जो मोहब्बत ने कहा था। 

                    ---रेक्टर कथूरिया

(19  जून 2018 की रात को करीब 10:55 बजे)

Saturday, September 14, 2024

मन के रंग तन और माहौल को कैसे प्रभावित करते हैं?

जीवन रहस्य:मन की शक्ति से दुनिया  का सामना आसान हो जाता है 

इस शक्ति को जगाना नामुमकिन नहीं होता थोड़ा मुश्किल बेशक हो 


जंगल के घर ठौर ठिकाने
: 15 मार्च 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//मन के रंग डेस्क):

तन पर डाले गए बाहरी रंग कैसा असर छोड़ते हैं मन की दुनिया पर 

मन के अंदर सचमुच बहुत शक्तिशाली और रहस्यमय होती   छुपी रहती हैं। सोइ रहती हैं। इस बात का अहसास बार बार महसूस भी हुआ करता है पर फिर भी अधिकतर लोग इस शक्ति से अभिन्न और अनजान से रह जाते हैं।  मन में गम या उदासी वाली कोई ऐसी बात उठती कि तन थक हार कर बैठ जाता। या फिर उदास करने वाला कुछ ऐसा विचार उठता कि निरशा का अंधेरा छाने लगता। कई बार ऐसा भी लगता कि सिर में दर्द सा उठने लगा है।  या फिर कोई और जिस्मानी समस्या खड़ी हो जाती। लगातार बारीकी से नोट किया तो तन के ये सभी झमेले मन की दुनिया से आए हुए लगते थे। चिंता भी हुई दवाओं पर भी सोचा लेकिन किसी सन्यासी मित्र से बात करना उचित लगा।  

उन्होंने कहा कि समस्या का स्रोत तो तुमने पकड़ लिया लेकिन आगे बढना भूल रहे हो। मैं समझ नहीं पाया तो उन्होंने कहा  जहां समस्या का स्रोत है वहीं पर ध्यान केन्द्रित करो। जैसे मन का असर तन पर पड़ता है उसी तरह तन का असर मन पर भी पड़ता है। उन्होंने मुझे कुछ मुद्राएँ और आसन भी बताए और खानपान का मार्गदर्शन भी किया। 

उनकी सलाह के मुताबिक साधक और जिज्ञासु ने हर रोज़ सुबह सुबह की शुद्ध हवा में प्राणायाम और कपालभाति करना शुरू किया। शुरुआत तो ज्यादा से ज़्यादा दस मिनट तक के समय से की गई थी लेकिन कुछ ही दिनों में यह समय बढ़ता  बढ़ता डेढ़ घंटे तक पहुंच गया। 

चेहरे पर रौनक और चमक भी बढ़ने लगी। आंखों के नीचे बने हुए काले से घेरे समाप्त होने लगे। दिन के समय सफ़र और काम के दौरान बार बार नींद का योर कम होने लगा और बिलकुल समाप्त भी गया। रात को नींद बड़े अनुशं से आनी शुरू हो गई। रत भर आराम की नींद का आनंदलेने के बाद सुबह सुबह साढ़े चार बजे बिना किसी अलार्म के नींद भी खुलने लगी। उठते समय ताज़गी का अहसास बढ़ने लगा। थकावट खत्म हो गई थी कब्ज़ की समस्या भी दूर होने लगी। इन रंगों का अब हर रॉय मिलने वाले भी नोटिस लेने लगे। 

बस इसी सादगी भरे प्रयोग से पता चला कि तन-मन और अंतरात्मा कितने अदृश्य धागे से बंधे होते हैं आपस में। कितनी मज़बूती के साथ है यह तारतम्य। अब इसे कोई सूक्ष्म शरीर कह ले या कुछ और लेकिन तन-मन और अंतरात्मा में कोई राबता तो जरुर है। 

इसके इलावा भी मन के रंग को तन और माहौल से प्रभावित करने में कई कारक होते हैं। यहां कुछ मुख्य कारक दिए गए हैं। समय और जगह की कमी के कारण संक्षिप्त चर्चा  ही रहेगी क्यूंकि इन सभी मुद्दों पर अलग से किताब भी बन सकती है। मन के रंग बहुत गहरे होते हैं और  मन की शक्ति का स्रोत भी होते हैं। 

इसी तरह अहमियत तो तन की भी कम नहीं होती है। तन पर भी बारीकी से सतर्क नज़र रखनी ही उचित रहती है। तन मन की इस दुनिया के अनुभवी लोगों के लोगों के अनुभव बताते हैं आपका शारीरिक स्वास्थ्य मन के रंग को प्रभावित करता है। योग, ध्यान, नियमित व्यायाम, और स्वस्थ आहार आपके मन को शांति, सकारात्मकता, और संतुलन प्रदान कर सकते हैं।

अधिकतम विश्राम और नींद के लिए भी ध्यान देना महत्वपूर्ण है। नींद की कमी मन को अधिक चिंतित और थका दिखा सकती है। लेकिन नींद की अधिकतता भी समस्या खड़ी कर सकती है। संतुलित सोना ही उचित रहता है। संतुलित भोजन और संतुलित व्यायाम आवश्यक होते हैं। 

शारीरिक रंगों और तरंगों का भी बहुत महत्व होता है। इनमें भी अपने मन और दूसरों के मन को प्रभावित करने की क्षमता होती है। उत्तेजित करने वाले रंगों का उपयोग करना मन को जागरूक कर सकता है, जबकि शांति और शांति के लिए हलके और शांत रंगों का उपयोग किया जा सकता है।

माहौल भी इस संबंध में असर डालता है। माहौल से मन के मूड में तब्दीली आती है। मन अधिक उत्साह में भी आ सकता है और निराशा में भी जा सकता है। इसमें शक्तियां जाग सकती हैं। इसीलिए साधना के लिए आवश्यक माहौल ढूंढ़ना या बनाना पड़ता है। 

आपके आसपास का माहौल मन के रंग को सीधे प्रभावित करता है। सकारात्मक और  सच्चे सहयोगी लोग, सुरक्षित और स्वागतमयी माहौल, और उत्सवी और प्रेरणादायक स्थितियाँ मन को उत्साहित कर सकती हैं। मन की रचनात्मकता बढ़ जाती है। 

विनाशकारी और नकारात्मक माहौल, तनाव, असुरक्षित स्थितियाँ, और नकारात्मक व्यक्तियों का सामना करने पर मन को परेशान और अस्वस्थ महसूस हो सकता है। इस माहौल का बहुत बुरा असर पढता है। इससे बचना ही उचित होता है। 

भवनों, कार्यालयों, और आवास की वातावरण का भी महत्व होता है। प्राकृतिक प्रकाश, हवा, और स्थिति की सफलता और संजीदगी आपके मन के रंग को प्रभावित कर सकती है।

मन के रंग को प्रभावित करने का यह प्रकार शारीरिक और मानसिक स्तर पर एक संतुलित जीवन जीने के माध्यम से किया जा सकता है। ध्यान देने योग्य माहौल, स्वस्थ आहार, और सकारात्मक विचार योग्य तरीके हैं जिनसे आप अपने मन के रंग को सुन्दर और सकारात्मक बना सकते हैं।

Monday, July 15, 2024

मन के रंगों का विज्ञान क्या है?

अगर इसे समझ गए तो ज़िंदगी बहुत आनन्दमयी बन जाएगी 


लुधियाना
: 14 जुलाई 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//मन के रंग डेस्क)::

सन 2001 में एक फिल्म आई थी-कभी ख़ुशी कभी ग़म---करण जौहर द्वारा लिखित और निर्देशित यह हिन्दी भाषा की पारिवारिक नाटक फ़िल्म बहुत हिट हुई थी। इसका निर्माण यश जौहर ने किया था। इस फ़िल्म में अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, शाहरुख खान, काजोल, ऋतिक रोशन और करीना कपूर प्रमुख भूमिका निभाते हैं जबकि रानी मुखर्जी विस्तारित विशेष उपस्थिति में नज़र आईं और बहुत यादगारी भी रहीं। इस फिल्म का नाम ही मन की उन बदलती हुई अवस्थाओं को याद दिलाता है जिनकी सही गिनता का भी शायद पता न लगाया जा सके। कभी ख़ुशी होती है, कभी गम होता है, कभी उदासी होती है और कभी निराशा और हताशा।  

आखिर मन के रंगों का विज्ञान क्या है?  इन रंगों का महत्व क्या है? इन बदलते हुए रंगों का स्रोत क्या है? कितनी तरह के हो सकते हैं मन के रंग? ज़िंदगी और सफलता को कैसे प्रभावित करते हैं यह रंग?

मन के रंगों का विज्ञान बहुत सीधा भी लगता है और बहुत गहरा और रहस्य्मय भी। विज्ञान के नज़रिये से देखें तो मन के रंगों का विज्ञान न्यूरोसाइकोलॉजी और न्यूरोसाइंस के अध्ययन पर आधारित है। मन पर नज़र रखने या इसे पढ़ने के लिए जब अध्ययन करते हैं कि किस प्रकार मस्तिष्क में रासायनिक प्रतिक्रियाएँ और न्यूरोट्रांसमीटर मनोदशा, भावनाओं और व्यवहार को प्रभावित करते हैं तो बहुत से हैरानीजनक परिणाम भी सामने आते हैं। इस पर असर करने वाले अलग अलग रसायन और  दवाएं भी जादू भरा असर दिखाते हैं। मन के रंग की मीडिया टीम ने इस संबंध में की गई पड़ताल के दौरान देखा कि इन दवाओं और रसायनों का असर बहुत तेज़ी से होता है मन की स्थिति को भी बदल देता है। थोड़ी देर के लिए लगता है कि मन अत्यधिक शक्तिशाली हो गया। यद्धपि वास्तव में ऐसा होता नहीं। मन पर यह रासायनिक असर बहुत ही सीमित समय के लिए होता है। आइए जानते हैं इन रसायनों के असर का कुछ संक्षिप्त सा विवरण। 

मन पर तेज़ी से असर डालने वाला एक रसायन होता है-डोपामाइन। इस रसायन का असर मन के आनंद और संतुष्टि की भावना से जुड़ा हुआ है। कुछ देर के लिए आनंद और संतुष्टि की ख़ुशी महसूस होती है। 

इसी तरह मन को तेज़ी से प्रभावित करने वाला एक रसायन होता है-सेरोटोनिन। यह रसायन मनोदशा को स्थिर करने में भी मदद करता है।

मन की  दुनिया के साथ नॉरएपिनेफ्रीन का भी गहरा संबंध है। इससे उत्तेजना और तनाव का स्तर काफी बढ़ जाता है। इस मामले में मन एक ऊंचाई पर पहुंचा हुआ महसूस होता है। हालांकि इसकी भी समय सीमा होती है। 

मन की कोमल और सूक्ष्म भावनाओं से सबंधित ऑक्सीटोसिन का असर भी कमाल का होता है।  यह सीधे और संवेदनशील रूप से स्नेह और संबंध की भावना से संबंधित है। इससे मन पर प्रेम और संबंध की भावनाएं बलवती होने लगती हैं। 

मन के इन रंगों का महत्व भी बहुत गहरा होता है। इन रंगों का असर बेशक सीमित समय के लिए ही होता हो लेकिन मन को बहुत गहरे तक और देर तक प्रभावित करता है। 

इन रंगों का महत्व इस बात में भी गहरायी से निहित है कि ये सभी रंग हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को कैसे प्रभावित करते हैं। मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य, संबंध, काम और समग्र जीवन की गुणवत्ता सभी इन रासायनिक प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करते हैं। 

यह सिलसिला इतना जटिल भी नहीं की समझ न आ सके लेकिन अगर इसे समझा न जाए या लापरवाही की जाए तो मन के रंग कईतरह की मुश्किलें भी खड़ी कर सकते हैं। इस मामले मैं आवश्यक बातों की चर्चा हम निकट भविष्य मी पोस्टों में करते रहेंगे। आज के लिए इतना ही।  

Sunday, May 19, 2024

कितने अजीब हैं हम//रेक्टर कथूरिया

इस जीवन चक्र में भी हम कविता ढूंढ़ने के प्रयास में रहते हैं!


सचमुच ज़िंदगी टुकड़ों में ही तो मिलती है--  

कहीं कम तो कहीं ज़्यादा मिलती है--

बालपन मिलता है और छूट जाता है--

या फिर छिन जाता है!

फिर यौवन आता है और वो भी छूट जाता है 

या फिर छिन जाता है..!

फिर बुढ़ापा आता है 

और वो भी छिन जाता है या छूट जाता है!

बहुत से सवाल हमारे ज़हन में भी आते हैं

फिर जवाब भी आते हैं---

कि यह सब तो महात्मा बुद्ध ने भी सोचा था---!

हम क्या ज़्यादा समझदार बन गए हैं?

हम भी वही कुछ सोचने लगे हैं!

फिर कोई खूबसूरत सुजाता भी सामने आती है--

खीर से भरा बर्तन भी लाती है---!

बरसों से सूखे तन को अमृत बूंदों से कुछ ताकत मिलती है!

अमृत ज्ञान की बरसात हुई लगती है!

फिर एक बेख्याली भी आती है!

उसी बेख्याली में जो कई ख्याल एक साथ आते हैं--

उनमें से एक ख्याल यशोधरा  का भी तो होता है!

जिसे ज्ञान प्राप्ति के चक्करों में 

अकेले सोती हुई छोड़ दिया था--

पलायन सिर्फ गौतम ने तो नहीं किया था..!

हम में से बहुत से लोग अब भी वही कर रहे हैं!

फिर राहुल की भी याद आती है--

उस बच्चे ने क्या बिगाड़ा था 

उसे बालपन में ही छोड़ दिया और भाग लिए ज्ञान के पीछे ..!

अतीत बहुत से सवाल पूछने लगा है--!

भविष्य अँधियारा सा लगने लगा है!

अब शब्द बहक भी जाएँ तो भी क्या होना है--!

अब कोई ख्याल महक भी जाए तो भी क्या होना है!

चिंताएं कल भी थीं-- 

चिंताएं आज भी हैं!

सवालों के अंबार पहले भी--आज भी हैं!

जवाब कब मिलेंगे.....?

       --रेक्टर कथूरिया 

Monday, November 20, 2023

लगता है जंग हार गए पर आग दिलों में बाकी है!

वो बात दिलों में बाकी है! जज़्बात दिलों में बाकी है!


तन मन के बदलते रंगों ने 

दाढ़ी के बदलते ढंगों ने 

हमें याद दिलाया 

देखो तो!

कितना कुछ हर पल बदल रहा!

कितना कुछ हर पल बदल रहा!

युग बदले!

मौसम बदल गए 

जंग के मैदान भी बदल गए!

खुशियाँ और गम भी बदल गए!

कई तख्त-ओ-ताज भी बदल गए!

सडकें भी देखो बदल गई

अब बड़े बड़े पुल नए बने!

हाइवे के अब अंदाज़ नए!

खेतों के भी रंग रूप नए!

संसद का भवन भी बदल गया!

कानून के भी हैं राज़ नए!

बदलाहट के इस युग में अब 

कई खान पान भी बदल गए!

पहले जैसे अब नाम नहीं!

पहले जैसे पैगाम नहीं!

पहले जैसी बोतल भी नहीं!

पहले जैसे अब जाम नहीं!

अब हाय हैलो कहते हैं!

चीची की ऊँगली मिलती है!

और हाथ से हाथ मिलाते हैं!

आलिंगन का अंदाज़ नहीं!

वो रेडियो वाले गीत नहीं!

वो फिल्मों वाली बात नहीं!

अब तामील-ए-इरशाद कहां!

अब शम्य फ़िरोज़ां भी न सुना! 

सिलोन रेडियो कहाँ है अब!

बस बदलाहट की तेज़ी है!

बस बदलाहट की तेज़ी है!

जैसे हों बुलेट ट्रेन में हम!

अब चन्द्रमां पर जाना है!

वहां फार्म हाऊस बनाना है!

कोई बंगला बुक करवाना है!

बड़ी भागदौड़ में उलझे हैं!

क्या पीना है-क्या खाना है!

क्या खोना है--क्या पाना है!

क्या खोना और क्या पाना है!

रफ्तार बहुत ही तेज़ है अब!

जैसे हो राहू की माया 

हर पल है साथ में इक साया!

जैसे केतू का चक्रव्यूह 

सब फंस गए इसमें आ कर हम!

वापिस अब कैसे जाना है!

पल पल चन्द्रमा बदल रहा!

पूर्णिमा झट से गुज़र गई

अब अमावस भी चली गई!

मन में पर अभी अँधेरा है!

किसी वहम भ्रम ने घेरा है!

फिर भी ब्रहस्पति का साथ है अब!

कुछ प्यार सलीका बाकी है!

अपना अंदाज़ भी बाकी है!

दिल की आवाज़ भी बाकी है!

अब भी हम मिल कर बैठते हैं!

क्या यही करिश्मा कम तो नहीं!

दिल का हर राज़ भी बाकी है!

होठों पे गीत भी बाकी है!

दिल में अभी बात भी बाकी है!

हाँ रात अभी भी बाकी है!

लगता है कि जंग हार गए!

पर आग दिलों में बाकी है!

वो बात दिलों में बाकी है!

जज़्बात दिलों में बाकी है!

नफरत का अंधेरा बेशक है!

नफरत की आंधी बेशक है!

भाई से भाई लड़वाने की 

साज़िश भी बेशक जोरों पर!

पर फिर भी आस तो बाकी है!

दिल में विश्वास भी बाकी है!

जो वार गए जानें अपनीं!

उनका वो साथ भी बाकी है!

हम आंधी में भी डटे हुए!

तूफानों में भी जुटे हुए!

हाथों में मशाल मोहब्बत की!

हम दुनिया बदलने बैठे हैं!

हम याद कबीर को करते हैं!

ढाई आखर माला जपते हैं!

सौगंध साहिर की खाते हैं!

उस सुबह का नाम ही जपते हैं!

हमें हर क़ुरबानी याद आई!

हर एक निशानी याद आई!

हमें गांधी जी भी याद रहे!

हमें गदर लहर भी याद आई!

वारिस हैं हमीं शहीदों के!

हर बात पुरानी याद आई!

हर एक कहानी याद आई!

हम जाग उठे-हम जाग रहे!

हम हर इक गली में जाएँगे!

हम हर इक घर में जायेंगे!

नई शमा रोज़ जलाएंगे!

हर सपना याद दिलाएँगे!

हर दिल में बात उठाएंगे!

सपने साकार कराएंगे!

हम जीत के जंग दिखलाएँगे!!

हम जीत के जंग दिखलाएँगे!!

          -रेक्टर कथूरिया 

19 नवंबर 2023 को रात्रि 10:45 बजे खरड़ वाले नूरविला में