Tuesday, October 26, 2021

त्यौहार से कहीं बड़ा रिश्ता है--किसी व्रत की कोई गुंजाईश नहीं

 पढ़िए इस लाईफ स्टाईल और अप्रोच को-ज़िंदगी बदल जाएगी  


सोशल मीडिया: 26 अक्टूबर 2021 (रेक्टर कथूरिया//मन के रंग)::

मेरा किसी उपवास, व्रत या त्यौहार से कोई विरोध नहीं है। जो लोग इसके नाम पर आडंबर करते हैं और छुप कर खा पी लेते हैं उनसे भी मैंने कभी विरोध नहीं जताया फिर करवा चौथ तो धर्म कर्म और आस्था से जुड़ा हुआ है। इसके विरोध का सवाल ही पैदा नहीं होता। लेकिन इसी त्यौहार के अवसर पर कुछ ऐसा दिखा कि लगा यही बात असली है। 

मीडिया के पास बहुत सी तस्वीरें जन्मदिन पर छपने आती हैं। बहुत सी तस्वीरें वर्षगांठ पर छपने के लिए आती हैं। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। तस्वीर है हम सभी के जानेमाने लेखक प्रकाश बादल और और उनकी जीन संगिनी इंदिरा ठाकुर की। उन्होंने 25 अक्टूबर 2021 को सुबह 7:30 बजे पोस्ट की। 

प्रकाश बादल साहिब पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ट सियासतदान प्रकाश बादल के हमनाम हैं। हिमाचल में रहते हैं और जानेमाने फ्रीलांस भी पत्रकार हैं। कभी अजीत समाचार से भी गहरे से जुड़े रहे। वन विभाग में कार्यरत रहने से प्रकृति की सरलता और इसी सरलता में छुपे बहुत से रहस्यों से भी अवगत होते रहे। समय समय पर इन्हें अपनी लेखनी में उजागर करते भी रहते हैं। कलम की धार अक्सर बहुत पैनी भी हो जाया करती है। एक बार पढ़ लो तो याद रहते हैं। इस बार की पोस्ट भी कुछ ऐसी है जो उन्होंने अपनी पत्नी इंदिरा ठाकुर जी के प्रेम में लिखी है। आजकल के युग में शादी के बाद भी यह प्रेम बना रहे यह किसी चमत्कार से कम नहीं। पढ़िए, ध्यान से पढ़िए और आपका ध्यान अपने अंतर्मन में भी चला ही जाएगा। फिर हो सके तो अपने वैवाहिक जीवन पर भी सोचिए। वहां भी कुछ ऐसी झलक मिले तो आप भाग्यशाली हैं। न मिले तो प्रकाश बादल साहिब से गुर सीखने की व्यवस्था अवश्य करें। 


बादल साहिब कहते हैं: करवा चौथ की चकाचौंध हो या उदासियों के सन्नाटे, ऊबड़-खाबड़ रस्ते हों या फूलों भरी क्यारियां, पीड़ा के भंवर हों या खुशियों की उड़ानें। हम हमेशा साथ रहे हैं।  मेरी जिदें रहीं तो इंद्रा के समझौते, मेरा अहंकार रहा तो उसका समर्पण,  मेरी पीड़ा रही तो उसका मरहम , मेरे सपने रहे तो उसके पंख। हमारा साथ कुछ ऐसा है। उसने मुझे बचाने-बनाने के लिये कोई कसर नहीं छोड़ी बल्कि मुझ जैसे नालायक से विवाह करके जीवन बड़े दांव पर लगा दिया। मेरे जीवन पर वो सुरक्षा की एक झिल्ली की तरह चिपकी हुई है, ऐसे में किसी व्रत की कोई गुंजाईश नहीं। उसके दिल में मुहब्बत के रंगों से भरी जो मेरी तस्वीर दिखाई देती है उसके आगे हाथ पर मेंहदी से लिखे बनावटी नाम की आकृति की क्या बिसात। मेंहदी का रंग तो साज-सज्जा का एक क्षणिक ज़रिया है परंतु इंद्रा के भीतर के मुहब्बतों के रंग बड़े चटख हैं। ऐसे में हम किसी व्रत के बंधन में नहीं मुहब्बत के बंधन में जी रहे हैं। हमारे लिए चाँद-चाँद ही है, चाहे करवा चौथ का हो या किसी पूर्णिमा का। हम जीवन की नदी में बहते जा रहे हैं, इंद्रा खुद को मेरे लिए ज़ाया कर रही है तो मैं उसके लिए अंजुरी भर खुशी जुटाने की कवायद में अब तक नाकाम!

पढ़ने के बाद मेरे मुँह से तो अनायास यही निकला:असली बात--असली रंग--असली ज़िंदगी--असली त्यौहार-असली नायक--असली नायका ...प्रकाश बादल और इंदिरा ठाकुर----ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद


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