Thursday, November 11, 2021

जब ओशो की पुस्तक ने मेरा ढंग तरीका ही बदल दिया

आज भी प्रश्न मौजुद हैं--कौन देगा उत्तर?

सत्तर का दशक था। समय मेरी उम्र रही होगी शायद 15-16 बरस। हाथों में थी ओशो की एक पुस्तक। शायद नाम था भारत के ज्वलंत प्रश्न या जलते प्रश्न। पेपर बैक एडिशन था। भूल गया हूँ की साधना पैकेट बुक्स की प्रकाशन थी या डायमंड वालों की। पिता जी मुंबई से लौटे तो मेरे लिए ओशो की कुछ किताबें लेते आए थे। 

पुस्तक में चुंबकीय आकर्षण था। मैं उसे जल्दी से पढ़ कर समाप्त करना चाहता था। इसलिए घर हो जा बाहर यह पुस्तक मेरे हाथ में ही रहती। इतने में पड़ोस से कोई वृद्ध महिला परिवार से मिलने आई। मेरे हाथ में ओशो की पुस्तक देख कर बोली तू ऐसी किताबें पढ़ता है क्या?मुझे बहुत अजीब सा लगा लेकिन उसी वक्त फैसला कर लिया कि  अब तो  ओशो की पुस्तक हाथ में ही रहा करेगी। तब से अब तक ओशो और मैं निरंतर सम्पर्क में हैं। ओशो के शब्दों के ज़रिए मुलाकात होती रहती है। आने वाले समय में ओशो का प्रभाव अभी और बढ़ेगा। 

आज यह सब याद आया इंटरनेट देखते हुए। वही किताब। टाईटल कुछ नया है। मनसा मोहिनी जी ने बहुत सुंदर ढंग तरीके से अपने ब्लॉग में से इस समग्री को प्रकाशित किया है। ओशो की उस पुस्तक ने देखने, सोचने और समझने तरीका ही बदल दिया था। इन किताबों को पढ़ कर आँख में आँख डाल कर सामने वाले के  एक एक शब्द को सुनना और एक एक शब्द का बारीकी से पोस्टमार्टम करते हुए हर बात का जवाब देना आ गया। 

एक उपलब्धि सी महसूस होती। एक निडरता का अहसास होता। इस तरह ओशो की किताबें जीवन का अंग बनती चली गईं। देखिए उसी पुस्तक में से एक अंश: 

भारत समस्याओं से और प्रश्नों से भरा है। और सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि हमारे पास उत्तरों की और समाधानों की कोई कमी नहीं है। शायद जितने प्रश्न हैं हमारे पास, उससे ज्यादा उत्तर हैं और जितनी समस्याएं हैं, उससे ज्यादा समाधान हैं। लेकिन एक भी समस्या का कोई समाधान हमारे पास नहीं है। समाधान बहुत हैं, लेकिन सब समाधान मरे हुए हैं और समस्याएं जिंदा हैं। उनके बीच कोई तालमेल नहीं है। मरे हुए उत्तर हैं और जीवंत प्रश्न हैं। जिंदा प्रश्न हैं और मरे हुए उत्तर हैं।

मरे हुए उत्तर हैं और जीवित प्रश्न हैं। और जैसे मरे हुए आदमी और जिंदा आदमी के बीच कोई बातचीत नहीं हो सकती ऐसे ही हमारे समाधानों और हमारी समस्याओं के बीच कोई बातचीत नहीं हो सकती। एक तरफ समाधानों का ढेर है और एक तरफ समस्याओं का ढेर है। और दोनों के बीच कोई सेतु नहीं है, क्योंकि सेतु हो ही नहीं सकता। मरे हुए उत्तर जिस कौम के पास बहुत हो जाते हैं, उस कौम को नये उत्तर खोजने की कठिनाई हो जाती है।

अब प्रश्नों के साथ एक उलझन है कि प्रश्न सदा नये होते हैं। प्रश्न हमारी फिकर नहीं करते। समस्याएं हमसे पूछ कर नहीं आती हैं, आ जाती हैं। और वे रोज नई हो जाती हैं और हम अपने पुराने समाधानों को जड़ता से पकड़ कर बैठे रह जाते हैं। तब हमें ऐसा लगता है कि समाधान हमारे पास हैं और समस्याएं हल क्यों नहीं होती हैं? गुरु हमारे पास हैं और प्रश्न हल नहीं होते हैं। शास्त्र हमारे पास हैं और जीवन उलझता चला जाता है।

एक बुनियादी भूल, और वह यह है कि सब उत्तर हमारे पुराने हैं। हमने नया उत्तर खोजना बंद कर दिया है। और नये प्रश्न नये उत्तर चाहते हैं। नई समस्याएं नये समाधान मांगती हैं। नई परिस्थितियां नई चेतना को चुनौती देती हैं, लेकिन हम पुराने होने की जिद्द किए बैठे हैं। हम इतने पुराने हो गए हैं और हम पुराने होने के इतने आदी हो गए हैं कि अब हमें खयाल भी नहीं आता कि हम पुराने पड़ गए हैं।

हमारे देश के सामने इसलिए पहला जीता सवाल यह है कि हम मरे हुए उत्तरों को विदा कब करेंगे? उनसे हम छुटकारा कब पाएंगे? उनसे हम कब मुक्त होंगे? क्या कारण है कि हमने नये प्रश्नों के नये उत्तर नहीं खोजे? यही कारण है–अगर हमें खयाल हो कि हमारे पास उत्तर हैं ही रेडीमेड, तैयार, तो हम नये उत्तर क्यों खोजें? मन की तो सहज इच्छा होती है लीस्ट रेसिस्टेंस की; कम से कम तकलीफ उठानी पड़े। उत्तर तैयार हैं तो उसी से काम चला लें। एकबारगी हमारे देश को अपने पुराने उत्तरों से मुक्त और रिक्त हो जाना पड़ेगा तभी हम उस बेचैनी में पड़ेंगे कि हम नई समस्याओं के लिए नये उत्तर खोजें।

हमें अपने अतीत से मुक्त होना पड़ेगा तो ही अपने भविष्य के लिए निर्माण कर सकते हैं। हमें अपने शास्त्रों से मुक्त होना पड़ेगा तो ही हम चिंतन के जगत में प्रवेश कर सकते हैं, अन्यथा हर चीज का तैयार उत्तर हमें किताब में मिल जाता है। मुसीबत आती है, हम गीता खोल लेते हैं। मुसीबत आती है, हम कुरान खोल लेते हैं। मुसीबत आती है, हम मुर्दा गुरुओं के पास पहुंच जाते हैं पूछने कि उत्तर क्या है? हम हमेशा अतीत से पूछते हैं, बीते हुए दिनों से पूछते हैं। लेकिन दुनिया में एक बड़ी क्रांति हो गई है, वह समझ लेनी चाहिए। और अगर वह हम न समझ पाएंगे तो हमारे प्रश्न रोज बढ़ते जायेंगे और हम एक भी प्रश्न को हल न कर सकेंगे। इसी विषय पर आप कुछ और सामग्री पढ़ सकते हैं यहाँ क्लिक कर के ओशो सतसंग में। --रेक्टर कथूरिया 

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