Monday, July 15, 2024

मन के रंगों का विज्ञान क्या है?

अगर इसे समझ गए तो ज़िंदगी बहुत आनन्दमयी बन जाएगी 


लुधियाना
: 14 जुलाई 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//मन के रंग डेस्क)::

सन 2001 में एक फिल्म आई थी-कभी ख़ुशी कभी ग़म---करण जौहर द्वारा लिखित और निर्देशित यह हिन्दी भाषा की पारिवारिक नाटक फ़िल्म बहुत हिट हुई थी। इसका निर्माण यश जौहर ने किया था। इस फ़िल्म में अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, शाहरुख खान, काजोल, ऋतिक रोशन और करीना कपूर प्रमुख भूमिका निभाते हैं जबकि रानी मुखर्जी विस्तारित विशेष उपस्थिति में नज़र आईं और बहुत यादगारी भी रहीं। इस फिल्म का नाम ही मन की उन बदलती हुई अवस्थाओं को याद दिलाता है जिनकी सही गिनता का भी शायद पता न लगाया जा सके। कभी ख़ुशी होती है, कभी गम होता है, कभी उदासी होती है और कभी निराशा और हताशा।  

आखिर मन के रंगों का विज्ञान क्या है?  इन रंगों का महत्व क्या है? इन बदलते हुए रंगों का स्रोत क्या है? कितनी तरह के हो सकते हैं मन के रंग? ज़िंदगी और सफलता को कैसे प्रभावित करते हैं यह रंग?

मन के रंगों का विज्ञान बहुत सीधा भी लगता है और बहुत गहरा और रहस्य्मय भी। विज्ञान के नज़रिये से देखें तो मन के रंगों का विज्ञान न्यूरोसाइकोलॉजी और न्यूरोसाइंस के अध्ययन पर आधारित है। मन पर नज़र रखने या इसे पढ़ने के लिए जब अध्ययन करते हैं कि किस प्रकार मस्तिष्क में रासायनिक प्रतिक्रियाएँ और न्यूरोट्रांसमीटर मनोदशा, भावनाओं और व्यवहार को प्रभावित करते हैं तो बहुत से हैरानीजनक परिणाम भी सामने आते हैं। इस पर असर करने वाले अलग अलग रसायन और  दवाएं भी जादू भरा असर दिखाते हैं। मन के रंग की मीडिया टीम ने इस संबंध में की गई पड़ताल के दौरान देखा कि इन दवाओं और रसायनों का असर बहुत तेज़ी से होता है मन की स्थिति को भी बदल देता है। थोड़ी देर के लिए लगता है कि मन अत्यधिक शक्तिशाली हो गया। यद्धपि वास्तव में ऐसा होता नहीं। मन पर यह रासायनिक असर बहुत ही सीमित समय के लिए होता है। आइए जानते हैं इन रसायनों के असर का कुछ संक्षिप्त सा विवरण। 

मन पर तेज़ी से असर डालने वाला एक रसायन होता है-डोपामाइन। इस रसायन का असर मन के आनंद और संतुष्टि की भावना से जुड़ा हुआ है। कुछ देर के लिए आनंद और संतुष्टि की ख़ुशी महसूस होती है। 

इसी तरह मन को तेज़ी से प्रभावित करने वाला एक रसायन होता है-सेरोटोनिन। यह रसायन मनोदशा को स्थिर करने में भी मदद करता है।

मन की  दुनिया के साथ नॉरएपिनेफ्रीन का भी गहरा संबंध है। इससे उत्तेजना और तनाव का स्तर काफी बढ़ जाता है। इस मामले में मन एक ऊंचाई पर पहुंचा हुआ महसूस होता है। हालांकि इसकी भी समय सीमा होती है। 

मन की कोमल और सूक्ष्म भावनाओं से सबंधित ऑक्सीटोसिन का असर भी कमाल का होता है।  यह सीधे और संवेदनशील रूप से स्नेह और संबंध की भावना से संबंधित है। इससे मन पर प्रेम और संबंध की भावनाएं बलवती होने लगती हैं। 

मन के इन रंगों का महत्व भी बहुत गहरा होता है। इन रंगों का असर बेशक सीमित समय के लिए ही होता हो लेकिन मन को बहुत गहरे तक और देर तक प्रभावित करता है। 

इन रंगों का महत्व इस बात में भी गहरायी से निहित है कि ये सभी रंग हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को कैसे प्रभावित करते हैं। मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य, संबंध, काम और समग्र जीवन की गुणवत्ता सभी इन रासायनिक प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करते हैं। 

यह सिलसिला इतना जटिल भी नहीं की समझ न आ सके लेकिन अगर इसे समझा न जाए या लापरवाही की जाए तो मन के रंग कईतरह की मुश्किलें भी खड़ी कर सकते हैं। इस मामले मैं आवश्यक बातों की चर्चा हम निकट भविष्य मी पोस्टों में करते रहेंगे। आज के लिए इतना ही।  

Sunday, May 19, 2024

कितने अजीब हैं हम//रेक्टर कथूरिया

इस जीवन चक्र में भी हम कविता ढूंढ़ने के प्रयास में रहते हैं!


सचमुच ज़िंदगी टुकड़ों में ही तो मिलती है--  

कहीं कम तो कहीं ज़्यादा मिलती है--

बालपन मिलता है और छूट जाता है--

या फिर छिन जाता है!

फिर यौवन आता है और वो भी छूट जाता है 

या फिर छिन जाता है..!

फिर बुढ़ापा आता है 

और वो भी छिन जाता है या छूट जाता है!

बहुत से सवाल हमारे ज़हन में भी आते हैं

फिर जवाब भी आते हैं---

कि यह सब तो महात्मा बुद्ध ने भी सोचा था---!

हम क्या ज़्यादा समझदार बन गए हैं?

हम भी वही कुछ सोचने लगे हैं!

फिर कोई खूबसूरत सुजाता भी सामने आती है--

खीर से भरा बर्तन भी लाती है---!

बरसों से सूखे तन को अमृत बूंदों से कुछ ताकत मिलती है!

अमृत ज्ञान की बरसात हुई लगती है!

फिर एक बेख्याली भी आती है!

उसी बेख्याली में जो कई ख्याल एक साथ आते हैं--

उनमें से एक ख्याल यशोधरा  का भी तो होता है!

जिसे ज्ञान प्राप्ति के चक्करों में 

अकेले सोती हुई छोड़ दिया था--

पलायन सिर्फ गौतम ने तो नहीं किया था..!

हम में से बहुत से लोग अब भी वही कर रहे हैं!

फिर राहुल की भी याद आती है--

उस बच्चे ने क्या बिगाड़ा था 

उसे बालपन में ही छोड़ दिया और भाग लिए ज्ञान के पीछे ..!

अतीत बहुत से सवाल पूछने लगा है--!

भविष्य अँधियारा सा लगने लगा है!

अब शब्द बहक भी जाएँ तो भी क्या होना है--!

अब कोई ख्याल महक भी जाए तो भी क्या होना है!

चिंताएं कल भी थीं-- 

चिंताएं आज भी हैं!

सवालों के अंबार पहले भी--आज भी हैं!

जवाब कब मिलेंगे.....?

       --रेक्टर कथूरिया